बोलता गांव डेस्क।।
संभाग मुख्यालय दुर्ग से दल्ली राजहरा रोड पर गुजरा से दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गांव खल्लारी। लगभग तीन हजार की आबादी है। साहू, हलवा, गोड़, सतनामी, राउत, कोष्टा, धोबी केंवट आदि जाति के लोग परस्पर सद्भाव से हिल मिलकर रहते हैं यहां। वे एक-दूसरे के दुख में दुखी और सुख में खुशी महसूस करते हैं।
यही कारण है कि गांव में जब किसी एक के घर बेटी की शादी होती है तो पूरा गांव एक परिवार की तरह हाथ बंटाता है। सिर्फ काम में हीं नहीं, बल्कि कार्यक्रम में होने वाले खर्च और सामानों की खरीदारी में भी। हैसियत अनुसार सभी लोग अपना हिस्सा बांट लेते हैं।
गोड़ समाज के प्रमुख अमन दुग्गा और शिक्षक कली राम साहू कहते हैं कि समान छोटा हो या बड़ा, सस्ता हो या महंगा। यह कोई मायने नहीं रखता। बात तो सिर्फ सहयोगी भावना की है। लोग अपनी हैसियत के अनुसार दस रुपए की पत्तल भी देते हैं। और दस हजार का सामान भी। बेटी के विवाह लायक हो जाने के बाद चिंता सिर्फ मां-बाप की ही नहीं होती, बल्कि सारा गांव सोचता है कि अब उसके हाथ पीले हो जाने चाहिए। यही कारण है कि दिन भर काम करने के बाद शाम को आंगन में धुआं उठने वाले घरों के लोग भी अपनी बेटी-बेटा की शादी पूरे धूम-धड़ाके से करते हैं।
कोई बंधन नहीं, अपनी हैसियत अनुसार करते हैं सहयोग
ननकी साहू बताती हैं कि उनकी बेटी की शादी में नकद के अलावा 50 किलो चावल भी दिया। नरेंद्र साहू ने 30 किलो शक्कर और 4 पीपा तेल दिया। लीलेश्वरी देशलहरे ने 2000 रुपए के साथ बर्तन दिए। पिछले लग्न में ऐसी ही एक बेटी हेमपुष्पा की शादी हुई। सुमित्रा की शादी में कौशिल्या बाई ने 2 टीना तेल, 2 कट्टा आलू और 1 कट्टा प्याज और लक्ष्मी निर्मलकर की बेटी किरण की शादी में सरिता ने 1 टीना तेल और चावल दिया था।