रायपुर
मशहूर रंगकर्मी, पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर का जन्म छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हुआ था. उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोक नाटक नाचा-गम्मत को दुनिया भर में पहचान दिलाई थी. उनका नाटक आज भी लोगों की जुबां पर है. गांव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद, पोंगा पंडित, चरणदास चोर, आगरा बाजार जैसे 100 से अधिक नाटकों का मंचन देश-विदेश में किया.
रंगमंच के फनकार हबीब तनवीर हमेशा जमीन से जुड़े नाटक लिखे और खेले. मशहूर नाटककार, निर्देशक, कवि और अदाकार हबीब तनवीर 8 जून के दिन दुनिया के रंगमंच से विदा हुए थे. हबीब तनवीर ने 50 वर्ष की अपनी लंबी रंग यात्रा में 100 से अधिक नाटकों का मंचन किया. शतरंज के मोहरे, लाला शोहरत राय, मिट्टी की गाड़ी, द ब्रोकन ब्रिज, जहरीली हवा और राज रक्त उनके मशहूरों नाटकों में शुमार हैं. लंबी बीमारी के बाद उन्होंने 2009 में 8 जून के ही दिन भोपाल में 85 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा.
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किंवदंती रंगकर्मी हबीब तनवीर (01 सितंबर 1923-08 जून 2009) के जीवन का अंतिम नाटक रवींद्रनाथ ठाकुर कृत ‘राजरक्त’ (2006) था। इसे पहले उन्होंने ‘विसर्जन’ नाम से खेला था। इसे मंच पर उतारने के लिए हबीब तनवीर दो महीने कोलकाता में रहे। उस दौरान उनसे अक्सर मुलाकात होती। कोलकाता के रवींद्र सदन परिसर स्थित सूचना विभाग के एक हाल में उसका रिहर्सल चलता।
‘आगरा बाजार’ से लेकर ‘शतरंज के मोहरे’, ‘लाला शोहरत राय’, ‘मिट्टी की गाड़ी’, ‘गांव के नाम ससुराल मोर नाम दामाद’, ‘चरणदास चोर’, ‘उत्तर राम चरित’, ‘पोंगा पंडित’, ‘जिन लाहौर नइ देख्या’, ‘कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना’, ‘द ब्रोकेन ब्रिज’, ‘जहरीली हवा’ जैसे बहुचर्चित नाटक खेलने के बाद हबीब अपने जीवन की सांध्यवेला में रवींद्रनाथ की ओर मुड़े थे।
उससे पहली बात तो यह पुष्ट हुई थी कि भारतीय रंगमंच के लिए रवींद्रनाथ अपरिहार्य बने हुए हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी कि उन्नीसवीं शताब्दी में लिखे गए नाटक को हबीब तनवीर ने इक्कीसवीं शताब्दी में खेला तो, यही नाटक की प्रासंगिकता का भी सबूत था। रवींद्रनाथ अपने नाटक ‘विसर्जन’ में गांधी की तरह लगते हैं। वे गांधी की तरह हिंसा के विरुद्ध निनाद करते हैं।
नाटक में धार्मिकता और कुप्रथाओं की जड़ता के खिलाफ आवाज उठाई गई है। नाटक देवी को प्रसन्न करने के लिए दी जानेवाली बलि और प्रकारांतर से पुरोहितवाद के विरुद्ध है। कहने की जरूरत नहीं कि दुनिया के कई देशों में धर्म के नाम पर जो खून-खराबा हो रहा है, वैसे में यह नाटक प्रासंगिक हो उठता है।
हबीब तनवीर की रंगयात्रा के पांच प्रमुख पड़ाव हैं। पहला पड़ाव मुंबई में इप्टा से उनका जुड़ाव था। दूसरा पड़ाव ‘आगरा बाजार’, तीसरा पड़ाव ‘मिट्टी की गाड़ी’, चौथा पड़ाव ‘चरणदास चोर’ और पांचवा पड़ाव ‘विसर्जन’ का उनका निर्देशन था।
हबीब ने रायपुर के बसंत राव नायक गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट आफ आर्ट्स एंड सोशल साइंस में उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद फिल्मों में जाने का मन बनाया और मुंबई चले गए। वहां उन्होंने ‘फिल्म इंडिया’, ‘बाक्स ऑफिस’ जैसी पत्रिकाओं में संपादन कार्य किया। रेडियों के लिए भी काम किया। मुंबई जाते ही हबीब तनवीर इप्टा से जुड़ गए थे।