मेडिकल की सस्ती पढ़ाई खींच ले जाती है यूक्रेन..भारत के निजी कॉलेजों में फीस 1 करोड़ से अधिक, यूक्रेन में 40 लाख रुपए में बनते हैं डॉक्टर! Featured

बोलता गांव डेस्क।।images 21

यूक्रेन के हालात और भारतीय छात्रों के वहां फंसने के बाद यह सवाल सबके मन में है कि आखिर यहां से छात्र-छात्राएं मेडिकल की पढ़ाई करने वहां या उसके आसपास के देशों में क्यों जाते हैं। इसका जवाब खोजने के लिए दैनिक भास्कर ने वहां पढ़ रहे छत्तीसगढ़ के कुछ छात्रों और उनके माता-पिता से बात की।

 

भारत से हर साल सैकड़ों की संख्या में बच्चे मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन, बेलारूस, कजाकिस्तान जैसे देश जाते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है कि भारत में 600 से अधिक सरकारी-निजी मेडिकल कॉलेज हैं, लेकिन छात्र अपना देश छोड़कर सात समंदर पार जाते हैं। वहां पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने इसे अपनी मजबूरी बताया। उनका कहना है कि भारत में सरकारी मेडिकल सीट हासिल करना बहुत कठिन है और प्राइवेट यूनिवर्सिटी में करोड़ों रुपए फीस देकर पढ़ने की उनकी क्षमता नहीं है। साथ ही यहां सीटों का आरक्षण इतना है कि कई बार अच्छे नंबर आने के बाद भी सीट नहीं मिलती इसलिए उन्हें यूक्रेन जैसे देश जाकर पढ़ाई करना पड़ रहा है।

 

यूक्रेन से 1 मार्च को भिलाई पहुंची नूपुर शर्मा ने बताया कि युवा भारत से क्यों यूक्रेन मेडिकल की पढ़ाई करने जा रहे हैं। टर्नोपल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से MBBS की पढ़ाई कर रही नूपुर ने बताया कि उन्होंने साल 2018 में NEET का एग्जाम दिया था। उनका स्कोर इतना अच्छा नहीं था कि दाखिला गवर्मेंट मेडिकल यूनिवर्सिटी में हो पाता। प्राइवेट यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए एक करोड़ या उससे भी अधिक फीस मांगी जा रही थी। इसके बाद उन्होंने यूक्रेन जाने का प्लान बनाया। वहां हर साल 3 से 3.5 लाख रुपए की फीस लगती है। 6 साल का एमबीबीएस का कोर्स पूरा करने में अधिक से अधिक 25-30 लाख रुपए का खर्च आता है। यही कारण है कि इतनी अधिक संख्या में बच्चे वहां पढ़ने जा रहे हैं। अगर भारत में भी फीस को यूक्रेन के बराबर या उससे थोड़ा अधिक कर दिया जाए तो कोई भी स्टूडेंट वहां नहीं जाएगा।

 

आरक्षण भी है एक कारण

 

बिलासपुर में रहने वाली टीचर सीमा लदेर की बेटी रिया भी वहां से मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं। सीमा का कहना है कि भारत में NEET देने के बाद भी आरक्षण के चलते स्टूडेंट्स का चयन मेडिकल कॉलेजों में नहीं हो पाता। इसके चलते स्टूडेंट्स को डेंटल कॉलेज में दाखिला लेना पड़ता है। ऐसे में MBBS करने के लिए मजबूरी में फॉरेन में मेडिकल कोर्स के लिए जाना पड़ रहा है।

 

प्रवेश प्रक्रिया है काफी आसान

 

भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए दाखिला तभी मिलता है, जब स्टूडेंट NEET का एग्जाम क्लीयर करता है। इसके लिए उसे कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यूक्रेन में मेडिकल प्रवेश परीक्षा भी नहीं होती है। केवल इंटरव्यू के आधार पर ही स्टूडेंट का दाखिला MBBS कोर्स के लिए हो जाता है।

 

पुराने नियमों में बदलाव से तेजी से बढ़ा रुझान

 

नूपुर ने बताया कि पहले विदेश से MBBS की पढ़ाई करके आने पर भारत में उसे फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम FMGE का एग्जाम देना पड़ता था। भारत सरकार इसे बंद करके अब इसकी जगह नेशनल एग्जिट टेस्ट ले रही है। यह एग्जाम भारत और विदेश दोनों जगह से पढ़ाई करने वाले बच्चों को देना पड़ता है। जब दोनों ही जगह के स्टूडेंट्स को एक जैसी प्रक्रिया से गुजरना होता है तो ऐसे में बच्चे विदेश से पढ़ाई करना अधिक बेहतर समझते हैं।

 

भारत से बेहतर पढ़ाई

 

मॉडल टाउन निवासी अशोक पाण्डेय ने बताया कि उनकी बेटी दीप्ति यूक्रेन से मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने अपनी बेटी को फीस के चलते तो वहां भेजा ही साथ ही एक और कारण वहां की पढ़ाई है। उन्होंने बताया कि उनके दो भतीजे भारत से MBBS कर चुके हैं। बेटी को उन्होंने यूक्रेन भेजा है। भारत में पढ़ाई उतनी अच्छी नहीं जितनी की वहां है। यही कारण है कि वहां से पढ़कर आने वाले बच्चे भारत में नेशनल एग्जिट टेस्ट को आसानी से क्रैक कर ले रहे हैं।

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