सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया जिसमें राज्य सरकारों को SC-ST कोटे में सब-कैटिगरी बनाने की अनुमति दी गई है। Featured

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया जिसमें राज्य सरकारों को SC-ST कोटे में सब-कैटिगरी बनाने की अनुमति दी गई है। इस फैसले से राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस असमंजस में हैं। दक्षिण भारत में इसका समर्थन हो रहा है, जबकि हिंदी पट्टी में विरोध बढ़ रहा है। जाति जनगणना का दबाव भी बढ़ रहा है।

नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली NDA सरकार के सामने बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले ने दुविधा पैदा कर दी है। उस फैसले का अगले कुछ दिनों में देश की राजनीति पर बड़ा असर देखा जा सकता है। इसकी आहट अभी से दिखने लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि SC-ST रिजर्वेशन के भीतर राज्य सरकारें अलग कोटा बनाकर आरक्षण का लाभ दे सकती हैं। सात जजों की बेंच के बहुमत से दिए फैसले के मुताबिक, राज्यों के पास आरक्षण के लिए SC-ST में सब-कैटिगरी बनाने की शक्तियां हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि राज्य को सब-कैटिगरी बनाने के लिए डेटा तैयार करना होगा और साबित करना होगा कि जिसे कैटिगरी में शामिल किया जा रहा है, वह आरक्षण के योग्य है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत OBC की तरह SC-ST पर भी लागू होता है, जिसके बाद इससे जुड़ी बहस नए सिरे से शुरू हो गई। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सत्तारूढ़ दल BJP और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सामने कितनी दुविधा भरी स्थिति पैदा कर दी है, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि अब तक दोनों दलों ने औपचारिक रूप से इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है। दोनों दलों के नेता इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से परहेज कर रहे हैं। दोनों दल अभी तक तय नहीं कर पाए हैं कि वे फैसले के साथ दिखें या इसका विरोध करें।

किसे खुश करें और किसे नाराज?

राजनीतिक दलों के इस असमंजस के पीछे है फैसले का विभिन्न तबकों पर पड़ने वाला अलग-अलग प्रभाव। जानकारों के अनुसार दक्षिण भारत के राज्यों में SC-ST कोटे में सब-कैटिगरी बनाने की मांग सालों से लंबित थी और वहां इस फैसले का अधिकतर लोग स्वागत कर रहे हैं। तेलंगाना में कांग्रेस शासित सरकार के सीएम रेवंत रेड्डी ने फैसले के तुरंत बाद कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबसे पहले पालन उनका राज्य करेगा। दिलचस्प है कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना में ही इस सब-कैटिगरी मांग का समर्थन आमसभा में किया था। दक्षिण के दूसरे राज्य और वहां के तमाम राजनीतिक दल भी फैसले के समर्थन में गए।

 

हिंदी पट्टी के राज्यों में इसका ठीक उलटा असर देखा गया। खुद NDA की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास गुट के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि फैसले पर पुनर्विचार हो। उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दायर कर रही है। मायावती, तेजस्वी यादव सहित इलाके के तमाम नेताओं ने इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने केंद्र सरकार से अध्यादेश लाकर फैसला पलटने को कहा है। इसके अलावा दलित संगठन भी फैसले का मुखर विरोध कर रहे हैं। कुछ संगठन तो इसी महीने 21 अगस्त को फैसले के विरोध में भारत बंद की अपील कर रहे हैं। ऐसे में अभी BJP और केंद्र सरकार अगले कुछ दिन फैसले के इर्द-गिर्द आ रही प्रतिक्रियाओं पर करीबी नजर रखेंगी और जल्दबाजी में अपने सियासी पत्ते नहीं खोलेंगी।

दरअसल, अलग-अलग कोटे में सब-कैटिगरी का मुद्दा हमेशा संजीदा और सियासी रूप से संवेदनशील रहा है। इसका सबसे बड़ा लाभ बिहार में नीतीश कुमार ने उठाया है। उन्होंने लालू प्रसाद यादव की पिछड़ों-दलितों की राजनीति में सेंध लगाते हुए महादलित राजनीति का रास्ता बनाया। यह दांव उनके लिए सियासी मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। उसी पैटर्न को पूरे देश में लागू करने की मंशा से नरेंद्र मोदी ने 2016 में OBC की कई जातियों की पुरानी मांग के मद्देनजर रोहिणी कमिशन का गठन किया था। इस कमिशन को OBC में जुड़ी जातियों और उप-जातियों की पहचान कर उन्हें अलग-अलग कैटिगरी में बांटना है। कमिशन का उद्देश्य OBC के बीच कमजोर जातियों को नौकरियों में अधिक मौके उपलब्ध कराना है। लेकिन कमिशन की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है, जबकि उसे 2018 में ही रिपोर्ट देनी थी। जानकार बताते हैं कि सरकार और BJP ने इसलिए अपने पैर पीछे खींच लिए हैं क्योंकि उन्हें यह पहल दोधारी तलवार लगी। फिलहाल उस कमिशन की रिपोर्ट बनने के बाद उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

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कोटे में कोटा पर क्यों उलझ गए हैं बड़े दल, यहां समझिए पूरी बात

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया जिसमें राज्य सरकारों को SC-ST कोटे में सब-कैटिगरी बनाने की अनुमति दी गई है। इस फैसले से राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस असमंजस में हैं। दक्षिण भारत में इसका समर्थन हो रहा है, जबकि हिंदी पट्टी में विरोध बढ़ रहा है। जाति जनगणना का दबाव भी बढ़ रहा है।

Reported byनरेंद्र नाथ | Edited byअनुभव शाक्य | नवभारत टाइम्स 6 Aug 2024, 8:56 am

 

 

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नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली NDA सरकार के सामने बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले ने दुविधा पैदा कर दी है। उस फैसले का अगले कुछ दिनों में देश की राजनीति पर बड़ा असर देखा जा सकता है। इसकी आहट अभी से दिखने लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि SC-ST रिजर्वेशन के भीतर राज्य सरकारें अलग कोटा बनाकर आरक्षण का लाभ दे सकती हैं। सात जजों की बेंच के बहुमत से दिए फैसले के मुताबिक, राज्यों के पास आरक्षण के लिए SC-ST में सब-कैटिगरी बनाने की शक्तियां हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि राज्य को सब-कैटिगरी बनाने के लिए डेटा तैयार करना होगा और साबित करना होगा कि जिसे कैटिगरी में शामिल किया जा रहा है, वह आरक्षण के योग्य है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत OBC की तरह SC-ST पर भी लागू होता है, जिसके बाद इससे जुड़ी बहस नए सिरे से शुरू हो गई। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सत्तारूढ़ दल BJP और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सामने कितनी दुविधा भरी स्थिति पैदा कर दी है, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि अब तक दोनों दलों ने औपचारिक रूप से इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है। दोनों दलों के नेता इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से परहेज कर रहे हैं। दोनों दल अभी तक तय नहीं कर पाए हैं कि वे फैसले के साथ दिखें या इसका विरोध करें।

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किसे खुश करें और किसे नाराज?

राजनीतिक दलों के इस असमंजस के पीछे है फैसले का विभिन्न तबकों पर पड़ने वाला अलग-अलग प्रभाव। जानकारों के अनुसार दक्षिण भारत के राज्यों में SC-ST कोटे में सब-कैटिगरी बनाने की मांग सालों से लंबित थी और वहां इस फैसले का अधिकतर लोग स्वागत कर रहे हैं। तेलंगाना में कांग्रेस शासित सरकार के सीएम रेवंत रेड्डी ने फैसले के तुरंत बाद कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबसे पहले पालन उनका राज्य करेगा। दिलचस्प है कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना में ही इस सब-कैटिगरी मांग का समर्थन आमसभा में किया था। दक्षिण के दूसरे राज्य और वहां के तमाम राजनीतिक दल भी फैसले के समर्थन में गए।

 

 

हिंदी पट्टी के राज्यों में इसका ठीक उलटा असर देखा गया। खुद NDA की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास गुट के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि फैसले पर पुनर्विचार हो। उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दायर कर रही है। मायावती, तेजस्वी यादव सहित इलाके के तमाम नेताओं ने इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने केंद्र सरकार से अध्यादेश लाकर फैसला पलटने को कहा है। इसके अलावा दलित संगठन भी फैसले का मुखर विरोध कर रहे हैं। कुछ संगठन तो इसी महीने 21 अगस्त को फैसले के विरोध में भारत बंद की अपील कर रहे हैं। ऐसे में अभी BJP और केंद्र सरकार अगले कुछ दिन फैसले के इर्द-गिर्द आ रही प्रतिक्रियाओं पर करीबी नजर रखेंगी और जल्दबाजी में अपने सियासी पत्ते नहीं खोलेंगी।

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दरअसल, अलग-अलग कोटे में सब-कैटिगरी का मुद्दा हमेशा संजीदा और सियासी रूप से संवेदनशील रहा है। इसका सबसे बड़ा लाभ बिहार में नीतीश कुमार ने उठाया है। उन्होंने लालू प्रसाद यादव की पिछड़ों-दलितों की राजनीति में सेंध लगाते हुए महादलित राजनीति का रास्ता बनाया। यह दांव उनके लिए सियासी मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। उसी पैटर्न को पूरे देश में लागू करने की मंशा से नरेंद्र मोदी ने 2016 में OBC की कई जातियों की पुरानी मांग के मद्देनजर रोहिणी कमिशन का गठन किया था। इस कमिशन को OBC में जुड़ी जातियों और उप-जातियों की पहचान कर उन्हें अलग-अलग कैटिगरी में बांटना है। कमिशन का उद्देश्य OBC के बीच कमजोर जातियों को नौकरियों में अधिक मौके उपलब्ध कराना है। लेकिन कमिशन की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है, जबकि उसे 2018 में ही रिपोर्ट देनी थी। जानकार बताते हैं कि सरकार और BJP ने इसलिए अपने पैर पीछे खींच लिए हैं क्योंकि उन्हें यह पहल दोधारी तलवार लगी। फिलहाल उस कमिशन की रिपोर्ट बनने के बाद उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

 

बढ़ेगा जाति जनगणना का दबाव

सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद केंद्र सरकार पर जाति जनगणना का दबाव और बढ़ेगा। तर्क दिया जा रहा है कि सब-कैटिगरी या क्रीमी लेयर के बारे में और स्पष्टता तभी आ सकती है जब सरकार के पास OBC और SC-ST आबादी का सामाजिक-आर्थिक आंकड़ा हो। यह आंकड़ा जाति जनगणना से ही आ सकता है। 2011 के बाद से देश में जनगणना नहीं हुई है। माना जा रहा है कि सरकार इस साल अक्टूबर में जनगणना की प्रक्रिया शुरू कर सकती है। लेकिन पहले से जाति जनगणना के दबाव और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सरकार की दुविधा बढ़ा दी है।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के क्रीमी लेयर का मसला उठाने की वजह से भी सरकार की उलझन बढ़ी है। हालांकि राहत की बात यह है कि कोर्ट ने सरकार को इस मामले में कुछ करने का आदेश नहीं दिया है। लेकिन सवर्ण सहित कुछ ऐसे वर्ग हैं जो सरकार से इस पर कुछ निर्णायक पहल चाहते हैं। वे BJP के कोर समर्थक माने जाते रहे हैं। उनकी नाराजगी का असर पार्टी 2019 में SC-ST एक्ट में बदलाव के समय देख चुकी है जब उन्हें मनाने के लिए सवर्ण गरीब के लिए आरक्षण का प्रावधान लाया गया था। कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सियासत का एक और पिटारा खुल गया है।

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