प्रश्न गांधी का नहीं, गाली का है?
सार्वजनिक जीवन में गाली गलौज अहंकार का सूचक समझा जाता है। जिनसे अपने परिवार न जुड़े वे अब महात्मा गांधी को देशभक्ति और लोक निर्णय का प्रमाण पत्र जारी करना चाह रहे हैं। गांधी को बापू कहने के पीछे बैरिस्टर मोहनदास के व्यक्तित्व में अन्तर्भूत वसुधैव कुटुंबकम् का भाव भी निहित है। जिनके जीवन में परिवारिक संदर्भों का नितांत अभाव है अब वे राष्ट्रपिता को भविष्य के पैमानों पर कसना चाह रहे हैं? सर्वजन के लिए बनने वाली कोई भी नीति संसदीय मर्यादा की लाठी लिए चलती है। संसदीय मर्यादा के विरूद्ध जाकर आचरण को दूषित करना किस धर्मात्मा का लक्षण होगा?
महात्मा गांधी न तो पूरी तरह से राजनीतिक व्यक्ति थे न ही पूरी तरह से धार्मिक व्यक्ति थे। कानून की पढ़ाई ने उनके भीतर ईश्वरीय न्याय के लिए हठधर्मी बैरिस्टर को स्थापित किया था। गांधी न्याय के केंद्र पर ईश्वर को रखकर अपने लिए क्रमिक परीक्षाओं और पाश्चाताप से परिपूर्ण नैतिक दंडों की श्रृंखला लिए चलते थे। जीवन के छोटे से छोटे फैसले को भी सत्य की ऐनक से टटोलना और ज्ञात सत्य के अनुकूल सीमित क्षमताओं के विरूद्ध असीम शोधन की कड़ियां जोड़ना गांधी के व्यक्तित्व की मौलिकता थी। सत्य के प्रयोगों की बुनियाद पर खड़ा जीवन एक साधारण बैरिस्टर को राष्ट्रपिता और महात्मा जैसे सांस्कृतिक सोपानों पर खड़ा करता गया है। गांधी ने अपने लिए कोई सम्मान नहीं मांगा, आचरण की शुचिता और सत्य के प्रति क्रमिक निष्ठा ही गांधी होने का सारांश है।
सत्य कभी हिंदू नहीं हो सकता, सत्य कभी मसीही नहीं हो सकता। सत्य अपनी मौलिकता में पंथनिरपेक्ष रहा है। ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसने सत्य के साक्षात्कार के प्रति शुतुरमुर्ग का रवैया अख्तियार किया हो यदि गांधी को घृणा और दुराव की दृष्टि से देखे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। गांधी के लिए भारत की बेटियों और अमेरीका की बेटियों में फर्क नहीं है। जो यह फर्क करते हैं उनके द्वारा यदि गांधी को गाली दी जाए तो यह गाली गांधी की ओर नहीं वरन गाली देने वालों के नैतिक पतन की ओर इशारा करती है।
गांधी ने आजीवन सामाजिक न्याय और लोकसमता की दिशा में लड़ाई लड़ी थी। भारत की विविधता, भाषायी बहुलता, जातीय पूर्वाग्रह को जानने के लिए गांधी ने अटक से कटक तक यात्राएं भी की। पाकिस्तान क्यूं बना, विभाजन के लिए ब्रिटिश विदेश नीति कितनी ज़िम्मेदार है, एक पराधीन देश जिसके पास भूखमरी और गरीबी की बाढ़ थी किस तरह अपनी कुंठा इतिहास के सबसे दैदीप्यमान नक्षत्र पर फेंक कर बच निकलना चाहता है इन तमाम प्रश्नों से परे एक सत्य भी है। यह सत्य गांधी से अधिक आपका और हमारा है। इस सत्य की सेवा अब गांधी की नहीं आपकी और हमारी ज़िम्मेदारी है। अहंकार जातीय हो, राजनीतिक हो या अविद्याजन्य हो एक न एक दिन अवसाद लाता है।
महाराष्ट्र में इन दिनों एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस की सरकार है। राजनीति में ऐसे गठजोड़ को अहि नकुल योग की संज्ञा दी जाती है। ऐसे समय में रायपुर के एक एनसीपी समर्थित नेता की धर्म संसद से गांधी के विरूद्ध घृणास्पद उद्गार निकल कर आते हैं। यह उद्गार मराठी मूल के भजन गायक के माध्यम से छलछला उठते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री का कथन है कि राजनीति फिजिक्स नहीं बल्कि केमिस्ट्री है। इन दिनों महाराष्ट्र तांबे के लोटे में दूध पी रहा है। पड़ोसी होने की खातिर कुछ ज़हर हम भी बांट रहे हैं।
लेखक - प्रणय धर दीवान