बेमिसाल बेटियां: सलमान खान संग बदली हजारों की किस्मत:70 हजार बच्चों को पढ़ाया; 4 हजार महिलाओं को दिया रोजगार, रितु कुमार का भी मिला साथ Featured

बोलता गांव डेस्क।।

कई बार एक छोटी सी घटना हमारे जीने का मकसद बदल देती है। हमें सोचने पर मजबूर कर देती है कि सिर्फ अपने लिए जीना ही जिंदगी है? फिर बदलाव की ऐसी लहर आती है कि कई जिंदगियां संवर जाती हैं। ऐसी ही एक घटना ने राशि आनंद की जिंदगी बदल दी। जानिए, बदलाव की ये कहानी, राशि आनंद की जुबानी-

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राशि आनंद अपने NGO के बच्चों के साथ

 

एक सवाल ने बदला सोचने का नजरिया

 

शुरुआती दौर में जब एक बार मैं गाजियाबाद के स्कूल में काम कर रही थी, एक बच्चा हमेशा स्कूल के बाहर रहता, वह अंदर नहीं आता था। मैंने देखा, उसके हाथ-पैर से खून निकल रहा था। मैंने इशारे से उसे अंदर बुलाया और पूछा कि आप दूर से देखते हैं, लेकिन अंदर क्यों नहीं आते। उसने पलट कर मुझसे सवाल किया, ‘आप कूड़ा ऐसे क्यों फेंकते हैं?’ मैं हैरान रह गई। बहुत छोटी सी बात उस बच्चे ने की, लेकिन हमें समझ क्यों नहीं आता। कांच को घर के अन्य कूड़े के साथ डिस्पोज करने की वजह से बच्चे के हाथ-पैर चोटिल थे।

 

अपने लक्ष्य के लिए छोड़ी नौकरी

 

मैं उस वक्त 25 हजार की जॉब कर रही थी, लेकिन जॉब सैटिस्फैक्शन नहीं था। मैंने मेरे पापा को बताया कि मैं कुछ अलग करना चाहती हूं। गरीब बच्चों के लिए कुछ बेहतर करने का ख्वाब है, इसे अब हकीकत में बदलना चाहती हूं। 'लक्ष्यम’ संस्था खोलने के लिए मुझे कुछ रुपए चाहिए होंगे। पापा के साथ ही मेरी पूरी फैमिली ने मुझे सपोर्ट किया। पापा ने 'लक्ष्यम' की शुरुआत करने के लिए 1.5 लाख रुपए फंड दिया। साथ में यह भी कहा कि शुरुआत में मैं मदद कर रहा हूं, लेकिन बार-बार समाज सेवा के लिए मुझसे पैसे मांगने मत आ जाना। तुम्हें अपने रास्ते खुद खोजने होंगे और 'लक्ष्यम' को खुद के दम पर चलाना होगा।

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राशि आनंद झुग्गी-झोपड़ी का जायजा लेते हुए

 

बच्चों को भेज रही स्कूल, महिलाओं को सिखा रही हूं लाइफ स्किल

 

2012 में मैंने ‘लक्ष्यम’ की शुरुआत की। इसके तहत हम कूड़ा बीनने वाले बच्चों को ब्रिज एजुकेशन देते हैं। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल भेजते हैं। इसके अलावा रोजगार और संसाधनों की कमी से जूझ रही महिलाओं और बच्चों के लिए काम करते हैं। वर्तमान में भारत के 15 राज्यों में 17 केंद्रों के साथ जुड़े हुए हैं, जिनके तहत यह प्रोग्राम हैं:

 

'बटरफ्लाई: चाइल्ड वेलफेयर एंड एजुकेशन' प्रोग्राम के तहत बच्चों को शिक्षा दी जाती है।

'लक्ष्यम टॉय लाइब्रेरी' बच्चों के संपूर्ण विकास पर आधारित है।

'रूह: अवेकनिंग वुमन सोल' को महिलाओं को जागरूक करने और सशक्त बनाने के लिहाज से डिजाइन किया गया है।

फैशन शो के फंड से बच्चों का विकास

 

‘लक्ष्यम’ के तहत हम 'फैशन फॉर ए कॉज' नाम से शो करते हैं। इसमें हम जैसे साधारण लोग मॉडल्स के रूप में गरीब बच्चों के साथ रैम्प पर कैटवॉक करते हैं। फेमस फैशन डिजाइनर रितु कुमार, अंजू मोदी, रोहित बल, रीना ढाका, पूनम भगत, प्रिया कटारिया पुरी हमें शो के लिए ड्रेसेज उपलब्ध कराते हैं। हमारा उद्देश्य इस शो के जरिए जमा हुए फंड को बच्चों के विकास कार्य में लगाना है। हमारी कोशिश रहती है कि हर साल कम से कम 200 बच्चों की पढ़ाई स्पॉन्सर्ड हो जाए ताकि वो भी आगे बढ़ सकें।

 

70 हजार बच्चे और 4000 से ज्यादा महिलाओं की बदली जिंदगी

 

‘लक्ष्यम’ के माध्यम से हम 70 हजार बच्चों के लिए काम कर रहे हैं, इसके अलावा 4000 से ज्यादा महिलाएं भी इससे जुड़ी हैं। पहले सेंटर में महिलाओं को सिलाई सिखाई जाती थी, लेकिन यह ज्यादा दिन तक नहीं चला। अब गाय के गोबर से बने उपले, गौमूत्र से फिनायल जैसे प्रोडक्ट्स बनाते हैं जो क्लीनिकली टेस्टेड हैं। इन प्रोडक्ट्स को हम ऑनलाइन साइट्स पर बेचते हैं और इस राशि से महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करते हैं।

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'लक्ष्यम' NGO की फाउंडर राशि आनंद पति के साथ

 

पेरेंट्स और पति ने किया भरपूर सपोर्ट

 

मेरी शुरुआती पढ़ाई रांची से हुई। पेरेंट्स रोटरी क्लब से जुड़े थे। मैंने उन्हें जरूरतमंदों के लिए डोनेशन देते हमेशा से देखा था। इसीलिए जब मैंने जॉब छोड़ी और खुद का काम शुरू किया, तो उन्होंने मुझे भरपूर सपोर्ट किया। कुछ समय बाद मेरी शादी हो गई। मेरे हसबैंड और इन-लॉज बहुत सपोर्टिव हैं। मेरा 3 साल का बेबी है। मैं चीजों को मैनेज करने की कोशिश करती हूं। मैंने क्लियर कर दिया है कि मैं वर्किंग हूं, लेकिन सैलरीड नहीं। मेरी फैमिली को इसमें कोई दिक्कत नहीं है।

 

काम शुरू करने से पहले बनाएं ब्लूप्रिंट

 

शुरुआत में हम बिना जानकारी के सब कुछ करने की कोशिश करते थे। बाद में हमने हर चीज की आउटलाइन बनानी शुरू की ताकि समझ में आए कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। जो समुदाय हाशिए पर हैं, उनके विकास के लिए हम आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से काम करते हैं।

 

समाज के लिए संदेश

 

कोई भी काम शुरू करने से पहले आपको अपने आइडिया पर काम करना चाहिए। ब्लूप्रिंट तैयार होगा तो चीजें आसान हो जाएंगी। NGO खोलना और लगातार इसे चलाना हर किसी के बस की बात नहीं है। धीरे-धीरे लोग अगर मदद की भावना से आगे आएंगे तो बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। ‘लक्ष्यम’ सलमान खान के ‘बीइंग ह्यूमन’ फाउंडेशन जोकि एक चैरिटेबल संस्था है, से जुड़ा है। इसके आलावा रितु कुमार जैसे डिजाइनर भी हमसे जुड़े हैं।

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