बोलता गांव डेस्क।। बराबरी के हक की लड़ाई लड़ने का दावा करके लाल झंडा उठाने वाले नक्सली अपने कैडर में कितने अलग होते हैं, इसका खुलासा नक्सली रह चुकीं सुंदरी ने भास्कर से किया है। वह 2005 से 2014 तक नक्सलियों की टीम का हिस्सा थीं।
अब डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) जवान के तौर पर बदली हुई जिंदगी बसर कर रहीं सुंदरी ने भास्कर से रोंगटे खड़े करनेवाली और भी हकीकत बयां कीं।
आइए जानें सुंदरी की जुबानी दिल दहला देने वाले नक्सली माहौल का सच।
मैं तब 15 साल की थी, रोज गाय चराने जाती थी, साथी बच्चों के साथ खूब खेलती थी, हम गाना गाते थे, नाटक करते थे। ऐसे ही एक दिन जब हम रोज की तरह खेलकूद में बिजी थे, तभी एक शख्स वहां पहुंचा और मुझे अगवा कर ले गया। बाद में पता चला की वह नक्सली था, उसका नाम राजमन था।
महीनेभर बाद मेरे घरवालों को मेरे नक्सलियों के चंगुल में होने का पता चला। तब उन्होंने राजमन से संपर्क कर मुझे लौटाने को कहा, लेकिन राजमन ने उन्हें धमकाया कि अगर लड़की को घर ले गए तो तुम्हारी घर-जमीन सब छीन लेंगे। 6 साल बाद जब मैं किसी तरह छिप-छिपाकर अपने गांव पहुंची, तो पता चला कि मां-बाप की मौत हो चुकी थी। मायूस होकर फिर नक्सलियों के बीच लौट आई।
करीब 9 साल नक्सलियों के बीच रहीं सुंदरी कुर्रम बताती हैं कि नक्सली बातें तो बराबरी की करते हैं, लेकिन असल में वे हर कदम पर भेदभाव करते हैं। ऊंची रैंक वाले नीचे की रैंक वालों से बहुत खराब तरीके से पेश आते हैं। यहां तक कि चाय के मामले में भी भेदभाव होता है। लोअर रैंक वालों को दूध की चाय भी पीने का हक नहीं है।
'मेरे साथ भी ऐसा होता था, लेकिन जब में 2-3 महीने कुख्यात नक्सली हिडमा की बॉडीगार्ड रही, तब मुझे कभी-कभी बची हुई दूध की चाय मिल जाती थी। लोअर रैंक वालों का खाना भी हायर रैंक वालों से अलग होता है। बचा खुचा खाना ही हमारे हिस्से आता था।'
जब लड़ाई की बात आती है तो सबसे पहले लोअर रैंक वाले ही भेजे जाते हैं। ऊंची रैंक वाले तभी आगे आते हैं जब सीधा उन पर हमला होता है। उनकी सिक्योरिटी भी 'ए' 'बी' और 'सी' लेवल की होती है, यानी तीन घेरों में उनकी सुरक्षा की जाती है। सुंदरी कहती हैं, '2014 में मैंने सरेंडर किया। अब उन दिनों के बारे में सोचने का भी मन नहीं करता।'
कुख्यात नक्सली हिडमा को करीब से जाना
कुख्यात नक्सली हिडमा के बारे में भी सुंदरी ने भास्कर को काफी कुछ बताया। ये वही नक्सली है, जिसने 2010 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सबसे बड़े नक्सली हमले को अंजाम दिया था, जिसमें 76 जवान शहीद हुए थे।
इसके अलावा झीरम घाटी और पिछले साल अप्रैल में छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सल हमले का भी इसे मास्टरमाइंड माना जाता है, जिसमें 22 जवान शहीद हुए थे। सुंदरी उस कुख्यात हिडमा की बॉडीगार्ड रह चुकी हैं।
सुंदरी बताती हैं, 'हिडमा का खाना बनाने के लिए खास लोग होते थे। हर किसी के हाथ का वह खाना नहीं खाता। तीन घेरों में उसकी सिक्योरिटी रहती है। उसे देसी मुर्गे की डिश काफी पसंद है। उसके पास हमेशा एके-47 राइफल रहती है। उसे हर तरह का फैसला लेने का अधिकार हासिल है।
नक्सली कहते हैं, 2-3 बच्चे हों तो एक संगठन को दे दो
सुंदरी बताती हैं, 'जिस दौरान मुझे अगवा किया गया, उसी समय 16-17 लड़कियों का भी अपहरण किया गया था। अगर कोई वापस गया तो घर वालों को धमकाया जाता है। नक्सलियों का कहना है कि अगर 2-3 बच्चे हैं तो एक को नक्सल आंदोलन में लगा दो।
वे पूछते तक नहीं, जबरन उठा ले जाते हैं। उसे अपने स्कूल में पढ़ाते हैं। ट्रेनिंग देते हैं। ब्रेन वॉश करते हैं। मैं गाने में बहुत अच्छी थी तो मुझे गाना-नाचना सिखाते थे। वहां मैं सबके लिए खाना बनाती थी।”
लड़कियों का शोषण भी होता है
लड़कियों से नक्सलियों का कैसा व्यवहार रहता है, इस पर सुंदरी एक चुप्पी के बाद कहती हैं, “कुछ लड़कियों का शारीरिक शोषण भी हुआ। मैं खुशकिस्मत थी कि मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ।”
अपनी 'जनताना' सरकार, कोई कानून मंत्री तो किसी पर शिक्षा का प्रभार
सुंदरी बताती हैं कि किसी देश की सरकार के जैसा ही नक्सलियों का सिस्टम होता है। अपनी सरकार होती है। सभी मंत्री होते हैं। कानून मंत्री, शिक्षा मंत्री।
इनके अपने स्कूल हैं, पंचायत हैं। इनका कोर्स भी अलग है। पढ़ना लिखना सिखाते हैं। नक्सल आंदोलन का मकसद भी बताते हैं। बहुत सख्त नियम होते हैं। वे कहती हैं, “अगर किसी ने गलती की और एक दो बार समझाने पर नहीं माना, तो फिर उसका सिर काट देते हैं। चोरी को भी बड़ा अपराध मानते हैं। मुखबिरों को तो बहुत बुरी मौत मारते हैं।”
प्यार पर पहरा, नसबंदी कंपल्सरी
सुंदरी बताती हैं, 'नक्सली शादी को बढ़ावा नहीं देते। प्यार करने को ठीक नहीं समझते। अगर पता चल गया कि कोई प्रेमी जोड़ा है उनके बीच, तो उन्हें अलग-अलग कर दिया जाता है। फिर भी अगर वे किसी तरह शादी कर लेते हैं तो उन्हें पति-पत्नी की तरह रहने की इजाजत नहीं है। बच्चे न हों, इसके लिए नसबंदी करा दी जाती है।'
अब कैसी है जिंदगी
2014 में सरेंडर करने के बाद 2019 में सुंदरी कुर्रम को डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) में नियुक्त किया गया। अब वे खुद नक्सल फाइटिंग फोर्स के रूप में तैनात हैं। पति भी नक्सली था, उसने भी सरेंडर किया। दोनों का एक बेटा है। वे लोगों को नक्सलवाद के खिलाफ जागरूक करते हैं।