बिलासपुर। बिलासपुर के पर्यटन स्थल सैलानियों को खूब लुभा रहे हैं। ताला हो या खूंटाघाट या फिर मल्हार, साल के पहले दिन से बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। मंदिर दर्शन के साथ पिकनिक का लुत्फ उठा रहे हैं। यह स्थिति अगले कुछ दिनों तक इसी तरह रहेगी।
पर्यटन एक ऐसी यात्रा है, जो न केवल हमें नए स्थानों से परिचित कराती है, बल्कि हमारे जीवन को भी समृद्ध बनाती है। पर्यटन हमें नए अनुभव प्रदान करता है। नए लोगों से मिलने का अवसर देता है। नए साल में इन पर्यटन स्थलों की रौनकता देखते ही बनती है।
प्रकृति ने बिखेरी है पूरी छटा
छत्तीसगढ़ का बिलासपुर जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। प्रकृति ने यहां अपनी पूरी छटा बिखेरी है। घने जंगलों से आच्छादित इस जिले में नदियां और पहाड़ भी हैं।
जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शासन द्वारा नित नए प्रयास किए जा रहे हैं। सैलानियों को ठहरने की सुविधा देने छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड द्वारा कुरदर और बेलगहना में रिसार्ट बनाया गया है।
वहीं, पर्यटन स्थलों में पहुंच मार्ग से लेकर सुंदरीकरण के रूप में आधारभूत सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा गया है। इन्हीं विशेषताओं की वजह से पर्यटकों को इन पर्यटन स्थलों पर सैर करना खूब पसंद आता है।
जानिए जिले के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल और उनकी विशेषताएं
ताला: कलात्मक पत्थर की मूर्तियों की भूमि ताला अमेरी कापा गांव के पास मनियारी नदी के तट पर स्थित है। ताला शिवनाथ और मनियारी नदी के संगम पर स्थित है। देवरानी-जेठानी मंदिरों के लिए सबसे मशहूर ताला की खोज 1873-74 में जेडी वेलगर ने की थी, जो प्रसिद्ध पुरातत्वविद् अलेक्जेंडर कनिंघम के सहायक थे।
इतिहासकारों ने दावा किया है कि ताला गांव 7वीं-8वीं शताब्दी ईस्वी की है। ताला के पास सरगांव में धूमनाथ का मंदिर है। इस मंदिर में भगवान किरारी के शिव स्मारक हैं।
मल्हार: मल्हार नगर बिलासपुर से दक्षिण-पश्चिम में बिलासपुर से शिवरीनारायण जाने वाली सड़क पर स्थित मस्तूरी से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मल्हार में ताम्र पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक का इतिहास सजीव हो उठता है।
मल्हार के उत्खनन में ईसा की दूसरी सदी की ब्राह्मी लिपि में आलेखित एक मृणमुद्रा प्राप्त हुई है, जिस पर गामस कोसलीया (कोसली ग्राम की) लिखा है। कोसला गांव से पुराना गढ़ प्राचीर तथा परिखा आज भी विद्यमान है, जो उसकी प्राचीनता को मौर्य के समयुगीन ले जाती है।
रतनपुर: बिलासपुर-कोरबा मुख्यमार्ग पर 25 किलोमीटर पर स्थित आदिशक्ति महामाया देवी कि पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का प्राचीन एवं गौरवशाली इतिहास है। त्रिपुरी के कलचुरियों ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक शासन किया।
इसे चतुर्युगी नगरी भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य इसका अस्तित्व चारों युगों में विद्यमान रहा है। राजा रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर के नाम से अपनी राजधानी बसाया। 1045 ई. में राजा रत्नदेव प्रथम ने मां महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया।
कानन पेंडारी: बिलासपुर शहर कानन पेंडारी चिड़ियाघर के लिए प्रसिद्ध है। यह मुंगेली रोड पर बिलासपुर से लगभग 10 किलोमीटर सकरी के पास स्थित एक चिड़ियाघर है। यहां 65 प्रजाति के 650 से अधिक वन्य प्राणी है।
खूंटाघाट: खूंटाघाट बांध बिलासपुर का एक मुख्य आकर्षण स्थल है। यह बांध रतनपुर में स्थित है। यह बांध रतनपुर से करीब चार किलोमीटर दूर है। यह बांध चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
खूंटाघाट बांध को खारंग जलाशय भी कहा जाता है। यह बांध खारंग नदी पर बना हुआ है। यह बांध पर्यटकों के लिए एक अच्छी जगह है। पिकनिक के लिए एक सुंदर गार्डन भी है।