छत्तीसगढ़ में पड़त भूमि पर दाल:खेती से विदेशों पर खत्म होगी निर्भरता उन्नत व रोगरोधी 25 किस्मों पर प्रयोग क्योंकि इसमें नॉनवेज जैसी प्रोटीन भी Featured

बोलता गांव डेस्क।।images 1

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक, उपभोक्ता, प्रोसेसर और आयातक है। इसके बावजूद वह म्यांमार, बंग्लादेश, कीनिया, जिम्बॉब्वे, फ्रांस व कनाडा जैसे देशों पर निर्भर है। लेकिन इसी दशक में भारत में दाल का इतनी खेती होने लगेगी कि वह आत्मनिर्भर बन जाएगा। इसमें छत्तीसगढ़ में पड़त भूमि पर दालों की खेती की योजना बनाई जा रही है। छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में एक फसल लेने के बाद 6-8 महीने तक खेत खाली पड़े रहते हैं। इंदिरा गांधी कृषि विवि में इस पर वर्कप्लान बन रहा है।

 

आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु में यह प्रयोग सफल रहा है। दरअसल वेस्टर्न और यूरोपीयन देशों में दाल पर प्रयोग चल रहा है। वे दाल से नॉनवेज जैसी स्वाद वाली वस्तुएं बनाने में लगे हैं। इसकी वजह दाल में पाए जाने वाले न्यूट्रीशियन हैं। छत्तीसगढ़ में 11 लाख हेक्टेयर में अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजना व मदर की दालें लगाई जा रही हैं। उन्नत व रोगरोधी 25 किस्मों पर प्रयोग चल रहा है। इसमें प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा।

 

खेतों की मेड़ों का उपयोग वैज्ञानिक तरीके से किया जाएगा। अरहर की जरूरत देश में है। 225 दिनों में पकने वाली क्रॉप के लिए किसान धैर्य नहीं रख रहे। इसलिए आईसीएआर प्रयास कर रहा है कि कम दिनों में पकने वाली दालों की किस्में प्रयोग में लाई जाएं।

 

नानवेज का प्रोटीन दालों में उपयोग बढ़ रहा - डॉ. गुप्ता

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली के सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि हिंदुस्तानी थाली डायवर्सिफाइड हो गई है। इसमें दाल, चावल व रोटी की जगह अब सब्जी का प्रचलन बढ़ा है। नॉनवेज भी भरपूर मात्रा में उपयोग हो रहा है। वेज पापुलेशन का बड़ा हिस्सा नॉनवेज पापुलेशन की तरफ सरक रहा है। इसी वजह से सब्जियां, अंडे व मुर्गियों व मछलियों का उत्पादन बढ़ रहा है। हम विश्व समुदाय को बताएंगे कि नॉनवेज में जो प्रोटीन है वह दालों में भी उपलब्ध हैं।

 

इसमें कैसे परिवर्तन आ रहा है। बंगाल में तो मसूर दाल को भी नॉनवेज की तरह माना जाता है। देश में कारपोरेट सेक्टर व उद्योगपतियों को कृषि की ओर आकर्षित करना होगा। दाल की खासियत केवल हमें न्यूट्रीशियन देना नहीं है। वह वह खेतों में एक फसली से होने वाली रूट डिजीज से खेतों को बचाती है। दाल उगाने से खेतों को टिकाऊ बनाती है। अपना नाइट्रोजन खुद पैदा करती है। अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाए रखने में भी मदद कर रही है।

 

खास बातें

 

•भारत विश्व का कुल 25 प्रतिशत दालें पैदा करता है।

•भारत में रोज हर व्यक्ति को 50 ग्राम दाल देने का प्रावधान है।

•वर्तमान में लगभग 52 ग्राम दाल औसतन मिल रही है।

•भारत प्रारंभ से ही उड़द, अरहर व मूंग दालों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहा।

•म्यांमार व बांग्‍लादेश भी भारत का ही हिस्सा तब भी 1970 से दालें बाहर से मंगवाने लगे।

•देश में कई दशकों तक 140 लाख टन से 160 लाख टन तक दालों का उत्पादन स्थिर रहा।

•2016 के बाद से उत्पादन 280 लाख टन पहुंच गया।

•2016 तक 60 लाख टन दाल आयात होती थी, जो अब 20 लाख टन रह गई।

•2025 से 2030 तक पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा।

•मध्यप्रदेश चना, अरहर, गरमा मूंग, मटर सबसे ज्यादा पैदा कर रहा।

•राजस्थान मूंग के मामले में आगे है। 15 सालों में तीन गुना चने का उत्पादन बढ़ा है।

•नार्थ -ईस्ट में लोग दालें उगाते नहीं हैं, लेकिन खाते जरूर हैं।

 

न्युज क्रेडिट– दैनिक भास्कर

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