बोलता गांव डेस्क।।
नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कई अहम जानकारी साझा की है। गृह मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 28 मई को संसद का नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने आजादी के अमृत महोत्सव के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नए संसद भवन में आजादी के प्रतीक के तौर पर सेंगोल स्थापित किया जायेगा। उन्होंन कहा कि सेंगोल (Sengol) ने हमारे इतिहास में अलग स्थान है। लेकिन आज तक आपको इससे दूर रखा गया। अब नई संसद भवन के उद्घाटन समारोह में सेंगोल को भी रखा जाएगा। शाह ने सेंगोल को लेकर एक वेबसाइट भी लॉन्च की है।
सेंगोल नाम से अधिकतर लोग अपरिचित रहे होंगे। ये सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता था। ये परंपरा चोल वंश से चली आ रही थी। 14 अगस्त की आधी रात भारत को आजादी मिली। उस दौरान भी प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी वायसराय लॉर्ड माउंट बेटन ने सेंगोल सौंपी थी। सेंगोल को हम लोग राजदंड के नाम से भी जानते हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने आज इसके इतिहास को बताया। इसके साथ ही अब ये सिंगोल म्यूजियम में नहीं बल्कि नई संसद भवन में स्थापित होगा। इससे पहले सिंगोल प्रयागराज के म्यूजियम में रखा था।
शाह ने बताया कि तमिल भाषा में इसे सेंगोल कहा जाता है। इसका अर्थ होता है संपदा से संपन्न। सत्ता का प्रतीक सेंगोल को नई संसद में स्थापित किया जाएगा। नई संसद भवन का जिस दिन उद्घाटन होना है कि उसी दिन सेंगोल तमिलनाडु से आए विद्वान पीएम को ये सेंगोल भेंट करेंगे। इसके बाद नई संसद भवन में स्पीकर की सीट के ठीक बगल में इसे स्थापित किया जाएगा।
सस्ता हस्तांरतरण का प्रतीक सेंगोल
शाह ने कहा कि 14 अगस्त 1947 को इस संगौल को अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। सवाल ये कि लेकिन ये हमारे सामने अबतक क्यों नहीं आया? 14 अगस्त 1947 को 10.45 बजे रात को तमिलनाडु से लाए गए इस सांगोल को स्वीकार किया था। ये सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया का पूरा किया गया था।
सेंगोल शब्द की उत्पत्ति
सेंगोल शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के “संकु” शब्द से हुई है। इसका मतलब होता है शंख। एक हिंदू धर्म में बहुत मान्यता रखता है। इसकी पूजा होती है। युद्ध के समय शंखनाद इसी से किया जाता है। आज भी मंदिरों में या घरों में जब भी भगवान की आरती की जाती है तो शंखनाद उस वक्त भी किया जाता है। सेंगोल राजदंड निष्पक्ष-न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक होता है। ये जिस भी राजा, सम्राट हो सौंपा जाता था उसके ऊपर जिम्मेदारी होती थी कि वो निष्पक्षता के साथ न्यायपूर्ण शासन करे ।
क्या है सेंगोल या राजदंड
राजदंड को तमिल में सेंगोल कहा जाता है। इसकी गहरी जड़ें देश की परंपरा में समाहित है, क्योंकि अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण में इसका इस्तेमाल हुआ था। आइए जानते हैं कि सेंगोल का भारतीय इतिहास में क्या महत्व रहा है और कैसे ये आजादी का एक प्रतीक बन गया।
-आजादी मिलने के बाद जब सत्ता हस्तांतरण की बात सामने आई तो लॉर्ड माउंट बेटन ने इसके लिए जवाहरलाल नेहरू से बात की। उन्होंने पूछा कि किस प्रतीक के साथ स्वराज्य को सौंपा जाए। इसके बाद हस्तांतरण को लेकर नेहरू ने स्वतंत्रता सेनानी सी राजा गोपालचारी से सुझाव मांगा, तब उन्होंने नेहरू को सेंगोल के बारे में जानकारी दी।
-तमिलनाडु का चोला साम्राज्य भारत का एक प्राचीन साम्राज्य था। तब चोला सम्राट सत्ता का हस्तांतरण सेंगोल सौंपकर करते थे। भगवान शिव का आह्वाहन करते हुए राजा को इसे सौंपा जाता था। नेहरू को राजा गोपालचारी ने इसी परंपरा के बारे में बताया।
-इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल परंपरा के तहत सत्ता हस्तांतरण की बात को स्वीकार किया और तमिलनाडु से इसे मंगाया गया। सबसे पहले सेंगोल को लॉर्ड माउंट बेटन को ये सेंगोल दिया गया और फिर उनसे हत्तांतरण के तौर पर इसे वापस लेकर नेहरू के आवास ले जाया गया। जहां गंगाजल से सेंगोल का शुद्धिकरण किया गया। उसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ नेहरू को इसे सौंप दिया गया।
-इसके बाद कभी भी सेंगोल का ज्यादा जिक्र नहीं हुआ। जब बीआर सुब्रमण्यम ने अपनी किताब में इसके बारे में बात की तो सेंगोल चर्चा में आया। तमिल मीडिया में इसकी खूब चर्चा हुई। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी जांच और इतिहास के बारे में पता लगाया। पता चला कि सेंगोल प्रयागराज के इलाहाबाद संग्राहलय में मिला और फिर इसे वापस लाने का फैसला लिया गया।
-संगोल का अर्थ तमिल भाषा के सिम्मई शब्द से आता है जिसका अर्थ नीति परायणता है। सेंगोल को नई संसद में लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा। अब सेंगोल को देश के पवित्र राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर जाना जाएगा।