Farmer's Day: 23 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है किसान दिवस, भारत के 5वें प्रधानमंत्री से जुड़ा है पूरा मामला Featured

बोलता गांव डेस्क।। भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती को मनाने के लिए हर साल 23 दिसंबर को भारत में 'किसान दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

इस साल का किसान दिवस बहुत अधिक खास है क्योंकि सरकार के खिलाफ एक साल तक प्रदर्शन में जुटे किसानों को आखिरकार जीत मिल गई है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेकर किसानों की मांग को भी स्वीकार कर लिया है।

भारत में 2001 से पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। चौधरी चरण सिंह ने 1979 और 1980 के बीच पद पीएम का पद संभाला था। इसके अलावा यह दिन भारतीय किसानों के योगदान के सम्मान में और देश में उनके महत्व को गौरवान्वित करने के लिए मनाया जाता है।

चौधरी चरण सिंह की जयंती पर क्यों मनाया जाता है किसान दिवस?

 

चौधरी चरण सिंह के किसानों के उत्थान और कृषि क्षेत्र के विकास में योगदान को मान्यता देने के लिए 2001 से किसान दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कृषि क्षेत्र में कुछ सबसे उल्लेखनीय सुधार लाए और कई इतिहासकारों ने उन्हें 'भारत के किसानों का चैंपियन' कहा।

 

चौधरी चरण सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के जिले मेरठ के नूरपुर में 1902 में हुआ था। चौधरी चरण सिंह का जन्म एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान में स्नातक की उपाधि ली थी। इसके बाद 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री ली थी। वह कानून के प्रैक्टिशनर भी थे और देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारथे ।

एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे चौधरी चरण सिंह देश के किसानों से गहरे तरीके से जुड़े हुए थे और ग्रामीण भारत के लिए काम करना चाहते थे। चौधरी चरण सिंह भूमि सुधारों को लिए कई काम किए थे। कृषि क्षेत्रों के लिए उनके कार्यों में सबसे अधिक उल्लेखनीय काम था, 1939 में ऋण मोचन विधेयक लाना, जिसने उन किसानों के लिए राहत की खबर लाई, जो साहूकारों के ऋणी थे। इसने किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं की संख्या पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला था। 1962-63 तक, उन्होंने सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में कृषि और वन मंत्री के रूप में भी कार्य किया।

चौधरी चरण सिंह द्वारा डिजाइन किया गया एक और परिवर्तनकारी बिल 1960 का लैंड होल्डिंग एक्ट था, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए लागू हुआ था। उन्होंने राज्य के कृषि मंत्री रहते हुए 1950 के जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के लिए भी काम किया।

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