बोलता गांव डेस्क।।
छत्तीसगढ़ में अब आरक्षण का मामला आधिकारिक तौर पर राजभवन बनाम कांग्रेस का रूप लेता जा रहा है। अब राजभवन के खिलाफ खुलकर कांग्रेस पार्टी विरोध प्रदर्शन के साथ आंदोलन करने की तैयारी में हैं। अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि सत्ताधारी पार्टी ने ऐसा आंदोलन किया हो मगर आरक्षण संशोधन विधेयक अटका होने की वजह से ऐसे हालात बन रहे हैं।
सोमवार को कांग्रेस भवन में हुई बैठक से बाहर आकर खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एलान किया। उन्होंने राजभवन के अफसरों, विधिक सलाहकारों के प्रति साफ शब्दों में नाराजगी जाहिर की। तल्ख अंदाज में मीडिया से बात करते हुए CM ने पूछा कि राजभवन के विधिक सलाहकर विधानसभा से भी बड़े हो गए हैं क्या।
दरअसल आरक्षण संशोधन विधेयक 2 दिसंबर से राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए अटका हुआ है। कुछ दिन पहले राजभवन की ओर से 10 सवाल भी सरकार से पूछे गए। इसको लेकर भी मुख्यमंत्री ने कहा- ये वैधानिक संस्थाओं को नीचा दिखाने की कोशिश हो रही है। राहुल जी भी कहते हैं कि संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने का काम हो रहा है। हमारे सभी अधिकारी इस बात के विरोध में थे कि फिर से जवाब देना है। ऐसी कोई संवैधानिक व्यवस्था ही नहीं है।
CM ने आगे कहा- फिर भी मैंने राज्यपाल की जिद को ध्यान में रखकर प्रदेश की पौने तीन करोड़ जनता को आरक्षण का लाभ मिले ये सोचकर जवाब भेजे। राज्यपाल का इगो भी सैटिसफाई हो जाएगा। मगर अब राज्यपाल की ओर से कहा गया है कि परीक्षण करेंगे, कौन करेगा परीक्षण जो विधानसभा से बड़ा हो गया। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट है परिक्षण के लिए, ये काम विधिक सलाहकार करेंगे ये तो दुर्भाग्य जनक है। इसलिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सभी नेताओं ने फैसला किया है कि 3 जनवरी को बड़ी रैली निकाली जाएगी।
भाजपा ने हमेशा नफरत पैदा करने का काम किया है
कांग्रेस की बैठक के बाद मीडिया से चर्चा में आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने कहा- भारतीय जनता पार्टी हमेशा नफरत फैलाने का काम करती है। प्रदेश की राज्यपाल भी भाजपा के जाल में फंसी है। ये पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस का विरोध राज्यपाल के खिलाफ होगा, लखमा ने कहा कि नहीं ये प्रदर्शन भाजपा और RSS की विचारधारा के खिलाफ होगा। आरक्षण की जो परिस्थिति प्रदेश में बनी है उसकी जिम्मेदार भाजपा ही है। इसलिए 3 तारीख को बड़ा आंदोलन होगा। हम दिल्ली जाकर भी आंदोलन करेंगे।
ये है नए विधेयक में
छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक और शैक्षणिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक पारित हुआ है। इन दोनों विधेयकों में आदिवासी वर्ग-ST को 32%, अनुसूचित जाति-SC को 13% और अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC को 27% आरक्षण का अनुपात तय हुआ है। सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण देने का भी प्रस्ताव है। इसको मिलाकर छत्तीसगढ़ में 76% आरक्षण हो जाएगा। इस विधेयक पर अब तक राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं होने से प्रदेश में सियासी तनाव बढ़ गया है।
ये भर्तियां अटकी हुई हैं
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने राज्य प्रशासनिक सेवा परीक्षा का अंतिम परिणाम रोक दिया है। वहीं राज्य वन सेवा के साक्षात्कार टाल दिये गये हैं। स्कूल में 12 हजार शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया भी खटाई में है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने राज्य सेवा के 171 पदों पर इस साल परीक्षा ली थी। मुख्य परीक्षा में सफल 509 लोगों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। यह साक्षात्कार 20 से 30 सितम्बर के बीच चला। वहीं 8 से 21 अक्टूबर तक प्रस्तावित राज्य वन सेवा परीक्षा के साक्षात्कार को टाल दिया गया है। इस परीक्षा से 211 पदों पर भर्ती होनी थी।
राज्यपाल की झिझक
राज्यपाल की झिझक
राज्यपाल अनुसूईया उइके अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC वर्ग को दिये गये 27% आरक्षण की वजह से आरक्षण विधेयकों पर हस्ताक्षर करने से हिचक रही हैं। राज्यपाल ने पहले मीडिया से बातचीत में कहा, मैंने केवल आदिवासी वर्ग का आरक्षण बढ़ाने के लिए सरकार को विशेष सत्र बुलाने का सुझाव दिया था। उन्होंने सबका बढ़ा दिया। अब जब कोर्ट ने 58% आरक्षण को अवैधानिक कह दिया है तो 76% आरक्षण का बचाव कैसे करेगी सरकार।
आरक्षण विधेयक को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, हाईकोर्ट ने 2012 के विधेयक में 58% आरक्षण के प्रावधान को अवैधानिक कर दिया था। इससे प्रदेश में असंतोष का वातावरण था। आदिवासियों का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया। सर्व आदिवासी समाज ने पूरे प्रदेश में जन आंदोलन शुरू कर दिया। सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों ने आवेदन दिया। तब मैंने सीएम साहब को एक पत्र लिखा था। मैं व्यक्तिगत तौर पर भी जानकारी ले रही थी। मैंने केवल जनजातीय समाज के लिए ही सत्र बुलाने की मांग की थी।