सर्द सुबह ने ओढ़ ली कोहरे की चादर फिर भी सिर्फ टीशर्ट में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार सुबह महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और अटल बिहारी के समाधि स्थल पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. अटल बिहारी बाजपेयी को श्रद्धांजलि देना, राहुल गाँधी की एक अलग छवि को दिखाता है जो दलगत राजनीति से ऊपर है. यह एक उदारता और सम्मान की राजनीतिक शुरुआत है.
राहुल कि 18 साल कि 'तपस्या'
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2004 यही वह साल था जब राहुल गांधी ने देश की सियासत में कदम रखा। पुश्तैनी अमेठी लोकसभा सीट से पहला चुनाव लड़ा और संसद की चौखट पार की। राहुल गांधी ऐसे राजनेता हैं जिनके ऊपर इतनी बड़ी गांधी-नेहरू परिवार की विरासत को ढोने की जिम्मेदारी है। उसे सहेजना बहुत बड़ी बात है।
राजनीति में राहुल की शुरुआत
भारत की राजनीति दुनिया के दूसरे देशों की तरह नहीं है। यहां दीक्षा बचपन से ही शुरू हो जाती है। चाहे वो जवाहर लाल नेहरु,इंदिरा गाँधी,अटल विहारी बाजपेयी या फिर प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी इन सभी नेताओं की राजनीतिक धुरी बचपन से ही तैयार हो रही थी. शुरुआती राहुल भारत की राजनितिक और समाजिक परिवेश से परिचित नहीं थे क्योंकि बचपन से ही एक सिक्यूरिटी कवर माहौल में पले- बड़े इन्ही वजहों से भारतीय राजनीति के पहलुओं से पूरी तरह परिचित नहीं हो पाए थे। और यही सब कारण रहे की राहुल गांधी कभी-कभी रिलक्टंट राजनेता नजर आते थे . 28 सितंबर 2013 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सजायाफ्ता सांसदों पर यूपीए सरकार के ही अध्यादेश को फाड़ दिया था।
राजनीति भी टीमवर्क है
जो भी हो, कड़ाके की ठंड में सिर्फ टी-शर्ट पहने यह सच्चा और साहसी नेता किसी की भी समझ से परे. इस बात में कतई शक नहीं है कि राहुल गाँधी के ‘निरंतर प्रयासों’ से उनकी राजनीतिक छवि को सुधारने में सफलता मिलती दिख रही है। लेकिन राजनीति एक टीमवर्क है. क्या जितना प्रयास राहुल गाँधी करते दिख रहे है क्या उनता ही प्रयास उनके इर्द-गिर्द रहने वाले नेता भी कर रहे है या फिर "भारत जोड़ो यात्रा" भी "लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ" सोशल मिडिया कैम्पेन तो नहीं ?
यात्रा कांग्रेस के राजनीतिक सूरज को उगाने में मदद कर पाएगी?
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये यात्रा कांग्रेस के राजनीतिक सूरज को उगाने में मदद कर पाएगी.राहुल गांधी की लोकप्रियता में भी यात्रा शुरू होने के बाद से उछाल आता दिख रहा है.पोलिंग एजेंसी सी-वोटर के मुताबिक़, राहुल गांधी जिन राज्यों से होकर गुज़रे हैं, वहां लोगों में उनके प्रति रुझान में 3 से 9 फीसद की बढ़त देखी जा रही है.लेकिन ये मामूली सुधार बताते हैं कि अगर राहुल गांधी को 2024 में मोदी को टक्कर देनी है तो उन्हें और उनकी टीम को बहुत मेहनत से काम करना होगा.
आपको बता दें, भारत जोड़ो यात्रा 108 दिनों में करीब 3000 किलोमीटर की दूरी नापते हुए शनिवार को दिल्ली पहुंची। यहां इस यात्रा का पहला चरण पूरा हुआ बताया गया। दूसरा चरण 3 जनवरी से शुरू होने वाला है। इन 108 दिनों में इस यात्रा ने राहुल गांधी को क्या दिया, देश और देशवासियों को लेकर उनकी समझ कितनी समृद्ध हुई, यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है, लेकिन इसका सही जवाब आने वाले दिनों में राहुल गांधी के फैसलों और उन फैसलों के असर के माध्यम से देश दुनिया के सामने खुलेगा। इस बीच, देश के अलग-अलग हिस्सों से गुजरती इस यात्रा ने देशवासियों पर, उनके मन मिजाज पर और, कांग्रेस तथा राहुल गांधी के प्रति उनकी धारणा पर कोई असर डाला है या नहीं? यह भी देखना होगा,