आजादी के बाद भी राजद्रोह कानून कि जरूरत क्यों, SC का केंद्र से सवाल, राजद्रोह के फर्जी मामलों पर जताई चिंता Featured

नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय के द्वारा राजद्रोह संबंधी कानून के मामले में गंभरिता दिखाए जाने पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीटर पर ख़ुशी जताते हुए लिखा कि “उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी का हम स्वागत करते हैं”

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हुए “औपनिवेशिक काल’’ में राजद्रोह संबंधी दंडात्मक कानून के दुरुपयोग को ले कर चिंता जताई है। और केंद्र सरकार से सवाल किया कि स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए महात्मा गांधी जैसे लोगों को ‘‘चुप’’ कराने के लिए ब्रिटिश शासन इस्तमाल करती थी। तो ऐसे प्रावधान को केंद्र क्यो समाप्त नही कर रही है।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक पूर्व मेजर जनरल और ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की याचिकाओं पर गौर करने पर सहमति जताते हुए कहा कि उसकी मुख्य चिंता ‘‘कानून का दुरुपयोग’’ है, जिसके कारण ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है।

पीठ ने मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया जिसे सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने स्वीकार किया।

इस गैर-जमानती प्रावधान के तहत ‘‘भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना ​​या असंतोष को उकसाने या उकसाने की कोशिश करने वाला’’ भाषण देना या अभिव्यक्ति एक अपराध है जिसके तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

पीठ ने कहा, अटॉर्नी जनरल हम कुछ सवाल करना चाहते हैं। यह औपनिवेशिक काल का कानून है और ब्रितानी शासनकाल में स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए इसी कानून का इस्तेमाल किया गया था। ब्रितानियों ने महात्मा गांधी, गोखले और अन्य को चुप कराने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसे कानून बनाए रखना आवश्यक है?’’

इसने राजद्रोह के प्रावधान के ‘‘भारी दुरुपयोग’’ पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत द्वारा बहुत पहले ही दरकिनार कर दिए गए सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए के ‘‘चिंताजनक’’ दुरुपयोग का जिक्र किया और कहा, ‘‘इसकी तुलना एक ऐसे बढ़ई से की जा सकती है, जिससे एक लकड़ी काटने को कहा गया हो और उसने पूरा जंगल काट दिया हो।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘एक गुट के लोग दूसरे समूह के लोगों को फंसाने के लिए इस प्रकार के दंडात्मकप्रावधानों का सहारा ले सकते हैं।” उन्होंने कहा कि यदि कोई विशेष पार्टी या लोग आवाज नहीं सुनना चाहते हैं, तो वे इस कानून का इस्तेमाल दूसरों को फंसाने के लिए करेंगे।

पीठ ने पिछले 75 वर्ष से राजद्रोह कानून को कानून की किताब में बरकरार रखने पर आश्चर्य व्यक्त किया और कहा, “हमें नहीं पता कि सरकार निर्णय क्यों नहीं ले रही है, जबकि आपकी सरकार (अन्य) पुराने कानून समाप्त कर रही है।’’

उसने कहा कि वह किसी राज्य या सरकार को दोष नहीं दे रही, लेकिन दुर्भाग्य से क्रियान्वयन एजेंसी इन कानूनों का दुरुपयोग करती हैं और ‘‘कोई जवाबदेही नहीं है’’।

पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए हुई सुनवाई में कहा कि अगर किसी सुदूर गांव में कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को सबक सिखाना चाहता है तो वह ऐसे प्रावधानों का इस्तेमाल करके आसानी से ऐसा कर सकता है। इसने कहा कि इसके अलावा राजद्रोह के मामलों में सजा का प्रतिशत बहुत कम है और ये ऐसे मुद्दे हैं जिनपर निर्णय लेने की आवश्यकता है।

अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि दर्ज कराये जाने वाले राजद्रोह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और 2016 से 2019 के बीच राजद्रोह के आरोप में दर्ज कराये गये मामलों की संख्या 160 फीसदी तक बढ़ गई। इन मामलों में दोष साबित करने के मुद्दे पर ग्रोवर ने आंकड़ों के हवाले से बताया कि 2019 में राजद्रोह के 30 मामलों में फैसला आया जिनमें से 29 में आरोपी को बरी कर दिया गया और एक में दोषसिद्धी हुई। उन्होंने कहा, ‘‘दोषसिद्धी की दर तो बहुत ही कम, 3.3 फीसदी है।’’

प्रधान न्यायाधीश को जब बताया गया कि न्यायमूर्ति यू यू ललित की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ इसी तरह की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसपर आगे की सुनवाई के लिए 27 जुलाई की तारीख तय की गई है, तो उन्होंने कहा कि वह मामलों को सूचीबद्ध करने पर फैसला करेंगे और सुनवाई की तारीख को अधिसूचित करेंगे।

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से मामले में पीठ की मदद करने को कहा गया था। वेणुगोपाल ने प्रावधानों का बचाव करते हुए कहा कि इसे कानून की किताब में बने रहना देना चाहिए और अदालत दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश दे सकती हैं।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि पत्रकारों के निकाय ने भादंसं की धारा 124 ए (राजद्रोह) की वैधता को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर की है और उस याचिका को वर्तमान याचिका के साथ संलग्न किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि गिल्ड ने वैधता को चुनौती देने के अलावा कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने का भी आग्रह किया है।

पीठ मेजर-जनरल (अवकाशप्राप्त) एसजी वोम्बटकेरे की एक नई याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध है।

पीठ ने वोम्बटकेरे की प्रतिष्ठा का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अपना पूरा जीवन देश को दे दिया और यह मामला दायर करने के पीछे के उनके मकसद पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।

पहले, राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली दो पत्रकारों किशोरचंद्र वांगखेमचा और कन्हैया लाल शुक्ला की याचिका पर एक अन्य पीठ ने केंद्र से जवाब मांगा था। इस बीच, आज पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी ने भी शीर्ष अदालत में इस कानून को चुनौती दी।

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