युद्ध से भविष्य अंधकार में: यूक्रेन से लौटे छात्रों को मैसेज-ऑनलाइन पढ़ो या कजाकिस्तान, किर्गिजस्तान जाओ Featured

बोलता गांव डेस्क।।IMG 20220629 205946

मेडिकल पढ़ाई का हब बन चुके यूक्रेन-रूस से 16 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ाई अधूरी छोड़कर लौटे हैं। इनमें से 300 छत्तीसगढ़ के हैं। इनकी पढ़ाई ऑनलाइन चल रही है और अभी परीक्षाएं हो रही हैं, जबकि मेडिकल की पढ़ाई ऑनलाइन होना संभव नहीं है। ऑफलाइन पढ़ाई के लिए यहां के छात्र अपनी यूनिवर्सिटीज को फोन कर रहे हैं तो ये रिसीव नहीं हो रहे हैं।

 

युद्ध के बाद से इनकी पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है और परीक्षाओं का दौर चल रहा है। मगर, मेडिकल की पढ़ाई ऑनलाइन कब तक? इस सवाल को लेकर अभिभावक चिंतित हैं। छात्रों ने अपने भविष्य को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो कोर्ट ने केंद्र सरकार और नेशनल मेडिकल कमीशन से 29 जून 2022 तक जवाब देने कहा है। इस बीच यूक्रेन की यूनिवर्सिटीज अभिभावकों के फोन भी रिसीव नहीं कर रही है।

 

वहां से फेसबुक पेज और मैसेंजर पर ही छात्रों को सूचना दी जा रही है कि उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई ही करनी होगी, या फिर कजाकिस्तान और किर्गिजस्तान जैसे देशों के विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना पड़ेगा। आधी-अधूरी पढ़ाई कर लौटे छात्र ही नहीं, उनके अभिभावक भी भविष्य को लेकर चिंतितत हैं। जिन एजेंट्स के जरिए उन्होंने बच्चों को यूक्रेन या रूस भेजा था, उनके पास भी पुख्ता जवाब नहीं है।

 

जिन छात्रों का वहां फर्स्ट इयर ही था, उनमें से अधिकांश नहीं लौटने का मन बना चुके हैं। एजेंटों तथा शिक्षाविदों का मानना है कि आने वाली 17 जुलाई को मेडिकल एंट्रेंस के लिए होने वाली नीट परीक्षा के बाद ही साफ होगा कि अविभाजित रूस के देशों में मेडिकल पढ़ाई के लिए इस साल बच्चे जाएंगे या नहीं। छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश से मेडिकल की पढ़ाई के लिए सर्वाधिक छात्र यूक्रेन जाते हैं, क्योंकि वहां पढ़ाई सस्ती है।

 

रूस में थर्ड ईयर से वहां की स्थानीय भाषा को जोड़ा जाता है। छात्रों को भाषाई समस्या आ जाती है, इसलिए ज्यादातर वहां जाना नहीं चाहते। दोनों ही देशों में मेडिकल का कोर्स 5 साल है। हालांकि किर्गिजस्तान, उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान में भी मेडिकल की पढ़ाई सस्ती है, मगर कोर्स 6 साल का है।

 

यहां के ज्यादातर छात्र सोवियत देशों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए तभी रुख करते हैं, जब नीट में उनका एमबीबीएस के लिए चयन नहीं हो पाता। देश के प्राइवेट मेडिकल कालेजों में पढ़ाई महंगी है, जबकि रूस-यूक्रेन में करीब 50 लाख रुपए में डिग्री हो जाती है। रूस-यूक्रेन युद्ध का सबसे ज्यादा असर यहां से मेडिकल की पढ़ाई के लिए गए छात्रों को हुआ है।

 

वहां से छत्तीसगढ़ लौटे छात्रों में आधे से ज्यादा ऐसे हैं, जिनका कोर्स एक या दो साल का ही बचा है। हर स्तर पर कोशिश जारी : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा था कि सरकार यूक्रेन से लौटे बच्चों के भविष्य को देखते हुए जल्द निर्णय लेगी।

 

उधर, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव पहले ही केंद्र को पत्र लिखकर यूक्रेन से लौटे छात्रों को भारत के कॉलेजों में प्रवेश देने की मांग कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ मेडिकल काउंसिल के सदस्य डॉ. राकेश गुप्ता का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारें एमबीबीएस की सीट बढ़ाने पर फोकस करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा छात्र भारत में रहकर ही पढ़ाई कर सकें।

 

बच्चों का भविष्य अधर में: पैरेंट्स

आयुष शुक्ला

खारकीव मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्र आयुष के पिता संतोष के मुताबिक फर्स्ट ईयर की पढ़ाई और परीक्षा ऑनलाइन हो चुकी है। यूनिवर्सिटी कहती है कि अब ऑफलाइन पढ़ाएंगे, लेकिन युद्ध जारी है इसलिए बच्चे को भेज नहीं सकते।

 

छवि खंडेलवाल

पिता संतोष खंडेलवाल बताया कि कॉलेज से मेल आया है कि नया सेशन सितंबर से चालू होगा। कभी कहते हैं कि बच्चों को हंगरी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर कर देंगे। अब तो सभी अभिभावकों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार हैं।

 

राहुल साव

खारकीव में एमबीबीएस के अंतिम वर्ष के छात्र राहुल को यूनिवर्सिटी ने फेसबुक के जरिए सूचना दी है कि उसके साथ सभी छात्रों को किर्गिजस्तान, कजाकिस्तान और रूस की यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर दे देंगे। इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।

 

विदेश भेजने से पहले सतर्कता जरूरी

नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने हाल में अपनी वेबसाइट में रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच वीजा न मिलने के कारणों के साथ-साथ चीन और अफगानिस्तान के हालात को लेकर एलर्ट किया है। मेडिकल एजुकेशन के जानकारों का कहना है कि अभिभावक विदेश में दाखिला दिलवाने से पहले संबंधित देश का इतिहास, मौजूदा आंतरिक और पड़ोसी देशों से विवाद का अध्ययन कर लें, एजेंटों के झांसे में न आएं।

 

इधर, सूत्रों के अनुसार यूक्रेन-रूस से लौटे मेडिकल छात्रों की पढ़ाई प्रभावित न हो, इसके लिए भारत सरकार फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिएट एक्ट (एफएमजीएल) में बदलाव कर सकती है। इसके तहत छात्रों को राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला दिलवाया जा सकता है, जैसा पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने राज्य के छात्रों के लिए किया है।

 

एक्सपर्ट व्यू - डॉ. किशोर दत्ता, एक्सपर्ट-फॉरेन एजुकेशन

सेंट्रल एशिया में करवाई जा सकती है पढ़ाई

 

रूस अपने छात्रों के साथ-साथ यूक्रेन के मेडिकल छात्रों को भी अपनी यूनीवर्सिटीज में पढ़ाने के लिए तैयार है। भारत लौटे छात्रों के भविष्य पर अभी केंद्र सरकार फैसला नहीं ले पाई है। अगर रूस-यूक्रेन नहीं भेजना हो, तब भी सेंट्रल एशिया के किसी अन्य देश में पढ़ाई करवाई जा सकती है। केंद्र सरकार इसकी अनुमति दे सकती है।

 

ऐसे सभी मामलों पर विचार

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार और एनएमसी मिलकर नीति बना रहे हैं कि रूस-यूक्रेन ही नहीं बल्कि ऐसे सभी मामलों में क्या कदम उठाने चाहिए। इस संबंध में जवाब जल्द सुप्रीम कोर्ट में रखेंगे।

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