बोलता गांव डेस्क।।
बिलासपुर पुलिस एक सकारात्मक कदम उठाने जा रही है। महिला पुलिसकर्मियों के बच्चे परेशान न हों और उनकी ड्यूटी प्रभावित न हो, इसके लिए पुलिस लाइन में झूलाघर शुरू हो रहा है। इसका नाम छइंहा रखा गया है। इसकी पहल एएसपी पारुल माथुर ने की है। बिलासागुड़ी के ऊपरी मंजिल में बड़ा हाल है। यहां पर झूलाघर संचालित होगा। यहां बच्चों की देखरेख के लिए एक आया होगी।
महिला या पुरुष पुलिस अपने छोटे बच्चों को यहां रखकर ड्यूटी कर सकते हैं। ऐसे जवान जिनके घरों में बच्चों को देखने वाले नहीं है और थाने में ड्यूटी पर ले आते हैं। कई लोग तो पेशी में कोर्ट तक अपने बच्चों को ले जाते हैं। उनके लिए यह बहुउपयोगी साबित होगा। सुरक्षा के लिए दो पुरुष हेड कांस्टेबल व दो लेडी कांस्टेबल की ड्यूटी रहेगी। ये लोग पूरे समय यहां रहेंगे।
बिलासागुड़ी के ऊपरी हाल पर इसके लिए अतिरिक्त बाथरूम व पेंट्री रूम बनवाए गए हैं। झूलाघर में बच्चों के लिए खिलौने, फिसलपट्टी, सहित अन्य संसाधन, किताबें रहेंगी। झूलाघर पूरी तरह सीसीटीवी कैमरों से लैस है। सुबह 9.30 बजे से शाम 6 बजे तक यहां ड्यूटी पर जाने वाले पुलिसकर्मी अपने बच्चों को निशुल्क रख सकेंगे। यहां 2 साल से 4 साल के बच्चों को रखा जाएगा।
आईसीयूडब्ल्यू एएसपी गरिमा द्विवेदी इसकी प्रभारी रहेंगी। यहां आने जाने वाले बच्चों के लिए रजिस्टर मेंटेनेंस होगा। माता या पिता को बच्चे को सुबह लाकर छोड़ना होगा और शाम को ले जाना होगा। उन्हें यहां अपना इमरजेंसी नंबर भी दर्ज करनी पड़ेगी। खाने-पीने की व्यवस्था बच्चों के घरवालों को करना पड़ेगा। झूलाघर संचालित करने के लिए एएसपी ने पुलिस मुख्यालय को चिट्ठी लिखी थी पर बजट नहीं होने के कारण संभव नहीं हुआ।
महिला अधिकारी कर्मचारियों की संख्या
पद संख्या
एसएसपी 1
एएसपी 1
डीएसपी 3
टीआई 6
एसआई 6
एएसआई 3
हेड कांस्टेबल 5
कांस्टेबल 141
योग 166
पुलिस वेलफेयर से होगा मेंटनेंस, मौजूद संसाधनों से ही चलेगा सबकुछ : झूलाघर का मेंटनेंस व सामान्य चीजें पुलिस वेलफेयर से पूरी की जाएंगी। इसका किसी से चार्ज नहीं लिया जाएगा। यह प्रदेश का किसी जिले का पहला झूलाघर होगा जिसकी रखरखाव जिला पुलिस अपने स्तर पर कर रही है। पुलिस ने अपने पास मौजूद संसाधनों से इसे तैयार किया गया है।
इस व्यवस्था से महिला पुलिसकर्मी पूरी क्षमता के साथ काम कर पाएंगी
पुलिस में महिलाओं की संख्या बढ़ी है। ऐसे में उन्हें बच्चों के लालन-पालन में परेशानी होती है। पुलिस में काफी संख्या में ऐसे कर्मचारी हैं, जिनके बच्चे छोटे और मासूम हैं। कर्मचारी उन्हें या तो अपने परिजनों के भरोसे छोड़कर आते हैं या फिर किसी आया के हवाले करके काम पर आते हैं। मैं खुद महिला हूं, इसलिए उनकी परेशानियों को करीब से समझती हूं। छोटी संतान होने के कारण पुलिस माता-पिता पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाते। जब उनके बच्चे झूलाघर में रहेंगे तो लंच टाइम में कुछ समय उनके साथ बिता सकेंगे।