बोलता गांव डेस्क।।
1. भाजपा की बड़ी जीत का सबसे बड़ा कारण?
बसपा का अघोषित साथ। बसपा ने 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़े किए, जो सपा के उम्मीदवार की ही जाति के थे। इनमें 91 मुस्लिम बहुल, 15 यादव बहुत सीटें थीं। ये ऐसी सीटें थीं, जिसमें सपा की जीत की प्रबल संभावना थी। इन 122 में 64 से अधिक सीटों पर भाजपा आगे चल रही है। यहां हार-जीत का मार्जिन भी कम ही रहने की संभावना है।
2. सपा की सबसे बड़ी चूक क्या रही?
खुद को मुस्लिम सरपरस्त पार्टी की छवि से बाहर नहीं निकाल पाई। सपा के कई नेताओं, खासकर बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी ने जिस तरह से अफसरों को धमकाया। उससे अफसर कितना डरे, कह नहीं सकते। लेकिन बड़ी संख्या में वो हिंदू वोटर छिटक गए, जो सपा को वोट देने की सोच रहे थे।
3. क्या भाजपा हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण में सफल रही?
हां, मोदी-योगी ने लगातार हर चीज को हिन्दुत्व से जोड़ा। इसकी शुरुआत पहले चरण में ही अमित शाह ने कैराना से की थी। और आखिरी चरण में मोदी काशी में जिस तरह 3 दिन रुके, उससे वे ये साबित करने में सफल रहे कि वे ही हिन्दू शुभचिंतक हैं। यही कारण है कि मुस्लिमों के वोट नहीं मिलने के बावजूद रुझानों में भाजपा का वोट शेयर 42% है। पिछली बार 39% से भी 3% अधिक। वहीं बसपा का 12.7% वोट शेयर दिख रहा है, जो पिछली बार के वोट शेयर 22.9 से 10% कम है। इसका साफ मतलब है कि हिन्दू दलित मायावती का कोर वोट बैंक इस बार बड़ी संख्या में भाजपा में शिफ्ट हो गया।
4. क्या राममंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर से जीती भाजपा?
कुछ हद तक हां। हालांकि इन दोनों सीटों पर काफी करीबी मुकाबला रहा, लेकिन ये दोनों मंदिर भाजपा को हिन्दुत्व का चेहरा और मजबूत करने वाले साबित हुए। अयोध्या की राम मंदिर वाली सीट और वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर वाली सीट में कड़ी टक्कर दिखाई दे रही है। विश्वनाथ मंदिर वाली सीट में काफी समय तक आगे चले याेगी सरकार के मंत्री डा. नीलकंठ अब पीछे हो गए हैं। यहां किशन दीक्षित ने बढ़त बना ली है।
5. तो क्या जातियों में लोग नहीं बंटे?
बंटे, लेकिन बहुत ही कम। पश्चिमी यूपी में जाट शहरी और ग्रामीण में बंट गए। सवर्णों में भी भेद रहा। दलित वोट पहली बार बसपा खेमे से भाजपा में शिफ्ट हुए। भविष्य की राजनीति के हिसाब से ये भाजपा का सबसे सकारात्मक पहलू है। ठीक इसी तरह सपा का माई (मुस्लिम और यादव) फैक्टर में सबसे बड़ा भाग यादव भी घोसी और कामरिया दो भागों में बंट गया। इसका फायदा भाजपा को होता दिख रहा है।
6. मोदी मैजिक कितना चला?
इस बार भी मोदी मैजिक चल गया। मोदी ने लगभग 19 जनसभाएं करके करीब 192 सीटों को कवर किया। इनमें ज्यादातर में भाजपा आगे चल रही है।
7. योगी के बुलडोजर ने कितना काम किया?
योगी ने 70 में 58 रैलियों में बुलडोजर की बात की। भाजपा इन सभी सीटों पर आगे निकल गई है। दरअसल, योगी ने बुलडोजर को माफिया के खिलाफ कार्रवाई का सिंबल बना दिया। लोगों ने इसे कानून-व्यवस्था में सुधार के रूप में देखा। जिसका असर रिजल्ट में भी दिखाई दिया।
8. लाभार्थी वोट कितना कारगर रहा?
हार-जीत के कयासों के बीच भाजपा को अगर सबसे अधिक विश्वास था तो वो 15 करोड़ लाभार्थियों पर। उन्हें महीने में दो बार अनाज-तेल के साथ नमक भी दिया गया। चुनाव के समय भाजपा ये संदेश देने में कामयाब रही कि नमक का कर्ज चुकाना है। ये लोगों की भावना से जुड़ा और काफी हद तक इसका प्रभाव रिजल्ट पर भी दिखाई दे रहा है।
9. किसान-आवारा जानवर-बेरोजगारी जैसे मुद्दों का कोई असर नहीं पड़ा?
थोड़ा-बहुत असर दिखा, लेकिन उतना नहीं, जितना भाजपा को डर या सपा को उम्मीद थी। सबसे बड़ा उदाहरण पश्चिमी यूपी है। यहां की 60 फीसदी सीटों पर भाजपा आगे है। माना जा रहा है कि गृहमंत्री अमित शाह की चाणक्य नीति ने यहां हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण में अहम रोल अदा किया। यूपी में लखीमपुर में जहां केंद्रीय मंत्री अजय टेनी के बेटे पर किसानों को गाड़ी से कुचलने का आरोप लगा, वहां भी भाजपा 8 में से 7 सीटों पर आगे है।
10. तो क्या अखिलेश की रैलियों के दिखने वाली भीड़ किराये की थी?
नहीं, ऐसा कहना गलत होगा, क्योंकि सपा वर्तमान रुझान के हिसाब से 132 सीट भी जीतती है तो उसे 84 सीटों का फायदा हो रहा है। ऐसे में आधार तो पिछली बार से बढ़ा ही। हां, रैलियों की भीड़ से समर्थकों का उत्साह पता चलता है, सरकार का नहीं। इसका एक बड़ा उदाहरण बिहार का पिछला चुनाव भी है। जहां राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव की रैलियों में इससे भी अधिक भीड़ उमड़ रही थी।