बोलता गांव डेस्क।।
India-UK Free Trade Agreement: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस हफ्ते ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक और विदेश मंत्री डेविड कैमरन के साथ भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर चर्चा की है। सोमवार को, विदेश मंत्री जयशंकर ने लंदन में कहा, कि एफटीए "भारतीय और ब्रिटिश सिस्टम, जिस पर बातचीत कर रहे हैं उसका बहुत ध्यान केंद्रित है, और हमें उम्मीद है कि हम एक लैंडिंग प्वाइंट खोज लेंगे, जो दोनों के लिए काम करेगा...।"
फ्री ट्रे़ड एग्रीमेंट पर साइन होने के बाद, भारत-यूके एफटीए, भारत के दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार, यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ एक समझौते के लिए एक टेम्पलेट के रूप में काम करेगा।
india uk free trade agreement
भारत की मौजूदा मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की 'लुक ईस्ट' नीति को बदलने का काम किया है, जिसके तहत जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा काफी ज्यादा बढ़ गया था और अब मोदी सरकार ने भारत के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए पश्चिम के साथ साथ अफ्रीकी देशों के साथ आर्थिक एकीकरण पर भरोसा कर रही है।
आसियान देशों, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भारत का व्यापार घाटा इतना बढ़ गया, कि बाद में भारत ने आसियन के साथ व्यापार समझौते से बाहर निकलने का फैसला किया और अब इसीलिए भारत, आसियान का सदस्य नहीं है।
द चायना फैक्टर
कोविड महामारी के दौरान सप्लाई चेन में आए व्यवधान ने पश्चिम देशों की कंपनियों को एक सबक दिया है, कि चीन पर अत्यधिक निर्भरता खतरनाक हो सकती है, लिहाजा पश्चिम ने अब 'चीन प्लस वन' के रास्ते पर आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, जिसमें 'प्लस वन' का मतलब ज्यादातर समय भारत ही है।
चीन से धमकियों की एक लगातार सिलसिला को झेलने के बाद ऑस्ट्रेलिया ने फौरन भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर साइन किया, जिसके बाद अब यूनाइटेड किंगडम भारत के साथ जल्द से जल्द व्यापार समझौते को फाइनल करना करना चाहता है।
भारत, चीन-प्रभुत्व वाली रिजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप(आरसीईपी) से बाहर निकलने के बाद, इस क्षेत्र में चीन को रोकने के लिए यूके, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ और कनाडा के साथ व्यापार सौदों पर विचार कर रहा है। हालांकि, फिलहाल खालिस्तान मुद्दे पर तनाव बढ़ने की वजह से एफटीए पर कनाडा ने बातचीत रोक दी है।
यूरोपीय संघ से बाहर आ चुका है ब्रिटेन
भारत के साथ व्यापार समझौता यूके के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी को 2025 की शुरुआत में काफी कठिन हो चुके चुनाव का सामना करना है।
कंजर्वेटिव पार्टी के अध्यक्ष और यूके के प्रधानंमत्री ऋषि सुनक के लिए आगामी चुनाव उनके लिए प्रतिष्ठा का सवाल है और वो हरगिज नहीं चाहते हैं, कि इतनी कम उम्र में वो राजनीतिक तौर पर सन्यास लें।
लेकिन, यूके सरकार एफटीए पर दस्तखत करने से इसलिए हिचक रही है, क्योंकि उसे एफटीए के तहत भारतीय सेवा क्षेत्र के श्रमिकों को वर्क परमिट देना होगा। हालांकि, भारतीय बाज़ार का आकार और क्षमता, लंदन को यूरोपीय एकल बाज़ार तक पहुंच के नुकसान की भरपाई करने का एक तरीका प्रदान करती है और इससे अंतत: यूके को ही सबसे बड़ा फायदा होगा और रोजगार में वृद्धि होने का ढोल ऋषि सुनक चुनावी कैम्पेन में बजा सकते हैं।
भारत को क्या फायदा होगा?
भारत के परिधान और रत्न एवं आभूषण जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों की बाजार हिस्सेदारी में, पिछले पांच वर्षों में भारी गिरावट देखी गई है।
भारतीय कपड़ा निर्यात को ब्रिटेन में 10% तक ऊंची टैरिफ दीवारों का सामना करना पड़ता है, लिहाजा फ्री ट्रेड एग्रीमेंट होते ही भारत को बांग्लादेश जैसी प्रतिस्पर्धा के बराबर खड़ा कर सकता है, और ये भारत के कपड़ा बाजार को पुनर्जीवित कर सकता है।
हालांकि, ब्रिटिश संसद को एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है, कि एफटीए के तहत भारतीय वस्त्रों को शून्य-शुल्क पहुंच प्रदान करने से बांग्लादेश जैसे कम विकसित देशों पर भारी दबाव पड़ सकता है। एक्सपर्ट्स का भी कहना है, कि इससे बांग्लादेश के कपड़ा मार्केट को भारी नुकसान हो सकता है।
यूके को और क्या फायदे होंगे?
जापान और आसियान देशों के साथ पिछले सौदों से पता चला है, कि व्यापार शुल्क समाप्त होने से निर्यात वृद्धि ऑटोमेटिक रूप से नहीं बढ़ती है। इसके अलावा, यूके में कई भारतीय निर्यात पहले से ही कम या शून्य टैरिफ का आनंद ले रहे हैं, जबकि भारत में ब्रिटिश निर्यात जैसे कार, स्कॉच व्हिस्की और वाइन पर 100-150% के काफी ज्यादा उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ता है। और एफटीए होने के बाद ये सामान भारत में काफी ज्यादा सस्ते हो जाएंगे।
विशेष रूप से, भारत से यूके में आयातित वस्तुओं पर औसत टैरिफ 4.2% है, लेकिन यूके से आयातित वस्तुओं पर भारत में औसत टैरिफ 14.6% है।
लिहाजा, ब्रिटिश सामान भारतीय बाजार में कम कीमत पर उपलब्ध होंगे, जिससे भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ जाएगी।
Non-tariff barriers
हालांकि, भारत और यूके के बीच जिस एफटीए पर बातचीत चल रही है, वो सिर्फ टैरिफ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये उससे आगे की भी बात करकता है।
भारत गैर-टैरिफ बाधाओं (एनटीबी) को खत्म करने के लिए बातचीत का उपयोग कर सकता है जो ऐतिहासिक रूप से निर्यातकों के लिए चिंता का विषय रहा है, खासकर कृषि निर्यात के लिए।
एनटीबी अक्सर विनियमों, मानकों, परीक्षण, प्रमाणन, या प्रीशिपमेंट निरीक्षण के रूप में आते हैं, जिनका मकसद मानव, पशु या पौधों के स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करना है। सब्जी और फल निर्यातकों को अक्सर यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं द्वारा कृषि आयात में कीटनाशकों और अन्य संदूषकों पर लगाई गई सख्त सीमाओं का सामना करना पड़ता है।
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में भी, क्वालिटी और टेक्नोलॉजिकल सामानों पर यूरोपीय देशों में भारतीय प्रोडक्ट्स को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और कई जांच से गुजरना होता है, लेकिन एफटीए के बाद ऐसा नहीं होगा।