बोलता गांव डेस्क।।
जगदलपुर : छत्तीसगढ़ में विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा कि शुरूआत हो चुकी है। बस्तर दशहरा पर्व बस्तर के लोगो को अलग पहचान दिलाता है। क्योंकि इस पर्व को 75 दिन मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष बस्तर दहशरा 75 दिन नहीं बल्कि 107 दिनों तक मनाया जायेगा। इस महापर्व का शुभारंभ 17 जुलाई (आज) से मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने पाट-जात्रा विधान के साथ होगा। इस पूजा विधान को पूरा करने के लिए शुक्रवार देर शाम को ग्राम बिलोरी के जंगल में साल के पेड़ का चयन कर पूजा-अर्चना कर काटा गया। जानकारी के अनुसार इस वर्ष 2023 में एक माह तक का पुरुषोत्तम / अधिकमास पड़ने और 28 अक्टूबर को ग्रहण होने के कारण दशहरा पर्व की समय सीमा बढ़ गई है।
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा उत्सव में फूल रथ परिक्रमा की शुरुआत मंगलवार से हो गई। द्वितीय से लेकर सप्तमी तक इस रथ को छह दिनों तक खींचा जाएगा। इसकी शुरुआत 411 साल पहले राजा वीरसिंह देव ने की थी। चार पहियों वाला फूल रथ तथा विजयादशमी के दिन खींचे जाने वाले विजयरथ में आठ पहिए होते हैं। बस्तर दशहरा की शुरुआत राजा पुरषोत्तम देव के शासनकाल में प्रारंभ हुई थी। उन्हें जगन्नााथ पुरी में रथपति की उपाधि के साथ सोलह पहियों वाला रथ प्रदान किया गया था। 16 पहियों वाला रथ पहली बार वर्ष 1410 में बड़ेडोंगर खींचा गया था।
चार पहिया रथ भगवान जगन्नााथ को समर्पित
महाराजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नााथ के भक्त थे इसलिए उन्होंने 16 पहियों वाले रथ से चार पहिया अलग कर गोंचा रथ बनवाया। जिसका परिचालन गोंचा पर्व में किया जाता है। इस तरह 12 पहियों वाला दशहरा रथ कुल दो सौ साल तक खींचा गया।
देवी को समर्पित दशहरा
लोक साहित्यकार रुद्रनारायण पानीग्राही बताते हैं कि फूल रथ प्रतिवर्ष द्वितीय से सप्तमी तक छह दिन तथा विजय रथ विजयादशमी तथा एकादशी के दिन भीतर रैनी तथा बाहर रैनी के रूप में दो दिन खींचा जाता है। भारत के पूर्व उत्तर राज्यों में शक्तिपूजा होती है। यह प्रभाव बस्तर में भी है। दोनों रथों में देवी आरूढ़ होती हैं इसलिए यहां रावण वध जैसी परंपरा नहीं हैं।
615 सालों से मनाया जा रहा दशहरा
उल्लेखनीय है कि बस्तर के आदिवासियों की आराधना देवी मां दंतेश्वरी के दर्शन करने हेतु हर साल देश विदेश भक्त और पर्यटक पहुंचते हैं। बस्तर दशहरा के एतिहासिक तथ्य के अनुसार वर्ष 1408 में बस्तर के काकतीय शासक पुरुषोत्तम देव को जगन्नाथपुरी में रथपति की उपाधि दिया गया था तथा उन्हें 16 पहियों वाला एक विशाल रथ भेंट किया गया था। इस तरह बस्तर में 615 सालों से दशहरा मनाया जा रहा है। राजा परुषोत्तम देव ने जगन्ना पुरी से वरदान में मिले 16 चक्कों के रथ को बांट दिया था। उन्होंने सबसे पहले रथ के चार चक्कों को भगवान जगन्नाथ को समर्पित किया और बाकी के बचे हुए 12 चक्कों को दंतेश्वरी माई को अर्पित कर बस्तर दशहरा एक बस्तर गाँचा पर्व मनाने की परंपरा का श्रीगणेश किया था, तब से लेकर अब तक यह परंपरा चली आ रही है।