रायपुर: पूरे छत्तीसगढ अंचल में हरेली श्रावण मास में मनाया जाने वाला त्योहार है। ग्रामीण इसे धूमधाम से मनाते हैं।किसान इस दिन अपने मवेशियों और कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं और ग्रामीणजन गोठान जाते हैं। सुबह के समय अपने साथ थाली में चावल, मिर्च और नमक चरवाहे के लिए ले जाते हैं। उसी के साथ गूंथा हुआ आटा जिसे लोंदी कहते हैं और खम्हार पान ले जाते हैं। उस गूंथे हुए आटे की गोली (लोंदी) बनाकर खम्हार पत्ता के बीच रख हल्का बांध देते हैं फिर अपने गाय, बैल, भैंस को खिलाते हैं। घर वापस लौटते समय चरवाहों द्वारा जंगल से लाई हुई वनौषधि को अच्छे से साफ कर एक मिट्टी के घड़े लेकर पानी में उबालकर रातभर औषधि का काढ़ा तैयार करते हैं। गांव में ही एक पारंपरिक वैद्य यानी बैगा होता है, जो हरेली के दिन गांव के सभी घरों में जाकर नीम की टहनियां पत्तों के साथ घर के प्रमुख द्वार और आंगन में लगाते हैं।
गोठान में प्रत्येक ग्रामीणों को औषधि बांटा जाता
ग्रामीणों में मान्यता है कि सावन के महीने में मौसमी बीमारियों के प्रकोप का संक्रमण प्रबल होता है। रोगों से बचने के लिए चरवाहे जंगलों से वनौषधि लाते हैं। यह कार्य सिर्फ चरवाहे करते हैं, जो उपवास रख कर साल में एक वनौषधि को पूरी रात जग कर तैयार करते हैं। वन औषधि से बने काढ़े को फिर सुबह गोठान में प्रत्येक ग्रामीणों को बांटा जाता है।
नीम का औषधिय महत्व
यह मधुमेह में अत्यंत लाभकारी है। नीम की छाल का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों के निवारण में सहायक है। इसके दातून से दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं। इसकी पत्तियां चबाने से रक्तशोधन होता है और त्वचा कांतिवान होती है। पत्ती को पानी में उबालकर नहाने से चर्म रोग दूर करने में सहायक होती है।