बोलता गांव डेस्क।।
सूपा, मोरा, दौरी, झांपी, बेना, पेटी जैसे बांस का सामान बनाने बनाकर जीवनयापन करने वाले बसौर समुदाय के लोग इन दिनों संकट के दौर से गुजर रहे हैं. एक तरफ आधुनिकता की वजह से बांस से निर्मित सामानों की बिक्री कम हो रही है, वहीं दूसरी ओर बांस की उपलब्ध सीमित होने की वजह से सामान बनाने में भी समस्या आ रही है.
सूरजपुर जिले का बृजनगर, खुंटापारा, कल्याणपुर और सोनवाही परर्री गांव आज भी पूरे संभाग में बांस से बने सामान की आपूर्ति के लिए मशहूर है. बसौर जाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी बांस के सामान और बर्तन बनाकर जीवन यापन करते आ रहे हैं. समाज के लोगों को पहले वन विभाग के डिपो से बांस सस्ते में मिल जाता था. अब काम के लिए गांव-गांव भटक कर मनमाने कीमत पर बांस खरीदना पड़ रहा है. महंगे बांस ने आर्थिक सेहत को बिगाड़ दिया है.
यही नहीं बांस से बने उत्पाद को पहले बाजार बाजार घूम कर बेचे जाते थे. लेकिन आधुनिक समय में बांस से बने सामानों का विकल्प कई अन्य धातु के बर्तनों ने ले लिया है. खासकर प्लास्टिक के कारण बांस से बने सामान का अब बाजार में बिकना मुश्किल हो गया है, जिसकी वजह से इनकी आर्थिक स्थिति और खराब होती जा रही है,
दरअसल, बांस का काम करनेवाले इस समुदाय की जाति तुरी थी, लेकिन बांस का काम करने की वजह से इनकी जाति का नाम बसोर पड़ गया. अब यही नाम इनके लिए मुसीबत साबित हो रहा है, क्योंकि सरकारी रिकॉर्ड में बसोर नाम की कोई भी जाति नहीं है. यही वजह है कि समुदाय के लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है. यही नहीं इस समुदाय के छात्रों का जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है.
समय के साथ ढालने की कोशिश
आखिरकार इस समुदाय के लोगों की समस्या को जिला प्रशासन ने समझा और समय के हिसाब से बांस का काम सीख सकें इसके लिए शिविर लगाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे बाजार के हिसाब से बांस के सामान बनाकर अच्छी कीमत हासिल कर सकें. वहीं दूसरी ओर इनकी जाति के सुधार को लेकर कलेक्टर सूरजपुर ने अधिकारियों को निर्देश दिया है, जिससे छात्रों के जाति प्रमाण पत्र बनाने में कोई समस्या न आए.
सरकार को है इनकी चिंता
जिला पंचायत के अध्यक्ष राजकुमारी मरावी ने बताया कि इनकी रोजगार की चिंता सरकार कर रही है. शासन से लेकर प्रशासन स्तर तक लगातार इन्हें बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है, साथ ही उन्होंने कहा कि जिला पंचायत में इन लोगों के लिए कार्य योजना बनाकर काम किया जाएगा, और इनको रोजगार मुहैया कराने के लिए हर संभव मदद किया जाएगा.
जानिए क्या होता है मोरा, दौरी
बांस से आमतौर पर सूपा, मोरा, दौरी, झांपी, बेना पेटी बनाया जाता है. सूपा जहां गेंहू और धान को साफ करने में काम आता है, वहीं मोरा की मदद से धान को खेत से खलिहान तक लाया जाता है. दौरी का उपयोग खासतौर पर शादी विवाह में मिठाई या अन्य सामग्री रखने के लिए किया जाता है. झांपी में बर्तन और आभूषण रखकर ऊपर से बंद किया जा सकता है. इसके अलावा बेनी गर्मी से राहत के लिए पंखे का काम करता है. बांस की पेटी में कपड़ा या अन्य सामान रखा जाता है.