कोलकाता विधानसभा में पास एंटी रेप बिल के बारे में जानिए, सजा-ए-मौत से लेकर कौन-कौन से प्रावधान? Featured

कोलकाता विधानसभा में पास एंटी रेप बिल के बारे में जानिए, सजा-ए-मौत से लेकर कौन-कौन से प्रावधान?

Aparajita Bill 2024: सीएम ममता बनर्जी ने तीन नए आपराधिक कानूनों के बहुप्रतीक्षित सेट पर कटाक्ष करते हुए कहा, अपराजिता कानून केंद्र द्वारा पारित कानूनों में "खामियों को दूर" करेगा. 

दिल्ली:

पश्चिम बंगाल विधानसभा में एंटी रेप बिल पास (West Bengal Anti Rape Bill) हो गया है. इस बिल का नाम है, अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024. इस प्रस्तावित कानून का मकसद बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों के जरिए महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा मजबूत करना है.ममता सरकार ने इस विधेयक को कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर की रेप के बाद हुई हत्या के बाद विधानसभा में पेश किया. इसके लिए विधानसभा का स्पेशल सत्र बुलाया गया था. विधानसभा में पारित होने के बाद कानून बनने के लिए बिल को राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होगी.  

 

विधानसभा में बिल पर हुई बहस के दौरान सीएम ममता बनर्जी ने 2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में 20 साल की दलित महिला के साथ रेप और 2013 में बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले में एक कॉलेज छात्रा की रेप और बर्बर हत्या के साथ ही पिछले हफ्ते जयपुर के एक सरकारी अस्पताल में एक बच्चे के साथ हुए हादसे का जिक्र किया. उन्होंने कहा, "यूपी और गुजरात जैसे राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर असामान्य रूप से ज्यादा है.वहां न्याय नहीं है, लेकिन बंगाल की महिलाओं को अदालतों में न्याय मिलेगा."

हम समर्थन करेंगे, कानून तत्काल प्रभाव से लागू हो"

 

सदन में बिल पेश होने के बाद बीजेपी नेता और नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने कहा, ''हम चाहते हैं कि यह कानून तत्काल प्रभाव से लागू हो. इसे लागू करवाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है.हमें परिणाम चाहिए. यह सरकार की जिम्मेदारी है.हम आपका पूरा समर्थन करते हैं, हम मुख्यमंत्री के बयान को आराम से सुनेंगे, वह जो चाहें कह सकती हैं लेकिन आपको गारंटी देनी होगी कि यह बिल तुरंत लागू किया जाएगा." उन्होंने कहा कि वो इस बिल पर वोटिंग की मांग नहीं करेंगे.

एंटी रेप बिल के बारे में जानिए

इस बिल में रेप और हत्या के दोषी के लिए फांसी की सजा का प्रावधान. 

चार्जशीट दायर करने के 36 दिनों के भीतर सजा सुनाने का प्रावधान. 

पुलिस को 21 दिन में जांच पूरी करनी होगी.

अपराधी की मदद करने पर 5 साल की कैद की सजा का प्रावधान.

हर जिले में स्पेशल अपराजिता टास्क फोर्स बनाने का प्रावधान.

रेप, एसिड, अटैक और छेड़छाड़ जैसे मामलों में ये टास्क फोर्स लेगी एक्शन.

रेप के साथ ही एसिड अटैक भी उतना ही गंभीर, इसके लिए आजीवन कारावास का प्रावधान. 

पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों के खिलाफ 3-5 साल तक की सजा का प्रावधान.

विधेयक में रेप की जांच और सुनवाई में तेजी लाने के लिए बीएनएस के प्रावधानों में संशोधन शामिल. 

अपराजिता बिल कैसे बनेगा कानून?

अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024 विधानसभा से पारित होने के बाद मंजूरी के लिए पहले राज्यपाल और बाद में राष्ट्रपति को भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह विधेयक कानून का रूप लेगा.

इससे पहले 2019 में आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक और 2020 में महाराष्ट्र शक्ति विधेयक विधानसभा से पारित हुआ था.इन दोनों विधेयकों में बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के सभी तरह के मामलों में अनिवार्य फांसी का प्रावधान किया गया था.इन दोनों विधेयकों को राज्य विधानसभाओं ने सर्वसम्मति से पारित किया था. लेकिन दोनों विधेयकों अभी तक राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है.

एंटी रेप बिल से लगेगी अपराध पर लगाम?

विधेयक में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के साथ-साथ 2012 के पोक्सो अधिनियम के कुछ हिस्सों में संशोधन करने और पीड़िता की उम्र चाहे जो हो, कई तरह के यौन उत्पीड़न के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान है. इस बिल में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराध के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है. 

 

बीते महीने लागू हुए बीएनएस की धारा-64 में बलात्कार के लिए 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. वहीं बीएनएस की धारा-66 में बलात्कार और हत्या और ऐसे बलात्कार, जिनमें पीड़ित निष्क्रिय हो जाती है, उनमें मौत की सजा का प्रावधान है.इसमें 20 साल की जेल की या उम्र कैद की सजा का भी प्रावधान किया गया है.

 

अपराजिता विधेयक में यह प्रावधान है कि इस तरह के अपराधों में केवल मौत की सजा दी जाए.इस विधेयक में सामूहिक बलात्कार के लिए भी मौत की सजा का प्रावधान है.

अपराजिता विधेयक में बलात्कार पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करने वालों के लिए तीन से पांच साल की सजा का प्रावधान है. जबकि बीएनएस में इसके लिए केवल दो साल की सजा का प्रावधान है. इसमें अदालती कार्यवाही से संबंधित किसी भी मामले को बिना अनुमति के छापने या प्रकाशित करने पर बीएनएस के तहत मिलने वाली अधिकतम दो साल की सजा को बढ़ाकर तीन से पांच साल तक कर दिया गया है.

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