आलेख: दो भूमिकाओं को एक वक्त पर बखूबी निभाकर असम को उम्मीद दे आए भूपेश बघेल

समय: रात 10 बजकर 37 मिनट 24 सेकंड
तारीख़: 16 मार्च 2021
स्थान: होटल टी काउंटी (डिब्रूगढ़, असम), कमरा नं 506
 
यह तस्वीर ठीक ऊपर दिए गये समय पर मेरे द्वारा खींची गयी थी। तस्वीर में आपको भले ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नज़र आ रहे हों लेकिन जिस वक़त मैंने अपने मोबाइल फ़ोन से यह तस्वीर खींची उस वक्त मुझे यह शख़्स सिर्फ़ एक कांग्रेस का कार्यकर्ता नज़र आ रहा था। कांग्रेस कार्यकर्ता भूपेश बघेल देर रात इस समय असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों की दैनिक कार्यविधि की समीक्षा कर रहे थे। कोरोना काल में हमारे लिए वर्चुअल बैठकें करना थोड़ा आम हो गया है और हम भी उसमें सहज होने लगे हैं।
असम चुनाव के दौरान भूपेश बघेल अपनी दैनिक दिनचर्या के हिसाब से सुबह उठते ही वो 2 भूमिकाओं में नज़र आते थे, पहली थी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री होने की दूसरी थी कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का सिपाही होने की।
 
bhupesh ayush
 
 
असम प्रवास के दौरान भी उनकी प्राथमिकता सबसे पहले छत्तीसगढ़ के प्रत्येक अख़बार की लगभग हर महत्वपूर्ण ख़बर को पढ़ लेने की होती थी उसके बाद वो असम के हिंदी और अंग्रेज़ी के अख़बार पढ़ते, साथ ही स्थानीय असमिया भाषा के अख़बार भी अनुवादक की सहायता से एक नज़र देखते।
नाश्ता कर लेने की जल्दी के बीच छत्तीसगढ़ में अपने सचिवालय को फ़ोन लगाकर प्रदेश की जानकारी लेना, निर्देश देना कभी भी दिनचर्या के हिस्से से अलग न हुआ। सुबह 11 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक की आमसभाओं में भी जब लगभग 2 बजे तम्बू के पीछे वो दोपहर का भोजन ग्रहण करते तब भी एक हाथ में रोटी और एक हाथ में फ़ोन और फ़ोन के दूसरी तरफ़ उनके सचिवालय का कोई सदस्य होता, ऐसा मुझे एकतरफ़ा फ़ोन की आवाज़ से पता चल सकता था।
 
ये सब लिखने का उद्देश्य बस इतना है कि जिस वक़्त भूपेश बघेल देर रात यह समीक्षा बैठक ले रहे थे, ठीक उसी दिन वे आमसभाएँ सम्बोधित कर चुके थे, डोर-टू-डोर घूमकर पर्चे बाँट चुके थे और डिनर के बाद लैपटॉप के सामने अपनी कोर टीम की उपस्थिति में प्रत्याशियों के साथ चर्चा कर रहे थे।
न चेहरे पर शिकन, न कोई थकान, न रात के समय का अंदाज़ा…यह सब एक मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं होता होगा। अद्भुत ऊर्जा, आत्मविश्वास और चेहरे पर संकल्पभाव तभी संभव है जब आप अपने अंदर के कार्यकर्ता को न केवल ज़िंदा रखे हुए हैं बल्कि आपके अंदर का संकल्प भी आपको ऊर्जा दे रहा है।
यह संकल्प क्या था?
 
यह संकल्प था उस भरोसे को बरकरार रखने का जो 23 नवंबर 2020 को असम के पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अजातशत्रु तरुण गोगोई की असमय मृत्यु के कारण असम में अचानक उपजे राजनैतिक शून्य को एक सहारा देने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने भूपेश बघेल पर जताया था।
 
असम कांग्रेस का एक मजबूत क़िला रहा है क्योंकि असम के लोग अमन पसंद हैं, तरक्की पसंद हैं, विविधताओं को सम्मान देना और उन्हें संरक्षित करना जानते हैं। यहाँ गांव-गांव तक कांग्रेस का मजबूत संगठन है, यहाँ के लोगों ने जब भी हरा रंग देखा है तो उसे सफ़ेद और केसरिया के बिना अधूरा पाया है। लेकिन इतिहास में दर्ज असंख्य ‘जयचंदों’ द्वारा अल्प समय में अतिमहत्वाकांक्षाओं के चलते खेले गए षड्यंत्रकारी खेलों से असम की कांग्रेस भी अछूती नहीं रही। यहाँ भी अचानक ऐसा कुछ हुआ कि जिससे प्रदेश में कांग्रेस के साथ एक नया दल अस्तित्व में आया जो मूलतः कांग्रेस-B था जिस पर संघ ने कीलें ठोंककर भाजपा की नेम प्लेट लगा दी।
 
2021 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को न केवल अपनी B टीम के सामने विधानसभा का चुनाव लड़ना था बल्कि गांव-गांव तक धड़ों में बंट चुके अपने परिवार को भी एक सूत्र में पिरोना था या यूँ कहें कि पिरोने की एक सार्थक कोशिश करनी थी।
 
घरों में अगर कोई वस्त्र फट जाए तो उसे दुरुस्त करने के लिए सुई में पोया हुआ धागा मिल जाए तो सहूलियत रहती है, वरना हमें सुई और धागा लेकर अपनी अनुभवी माँ के पास जाना होता है। असम अपनी माँ को नवंबर में खो चुका था। तभी शायद राहुल गांधी जी ने हाल ही में छत्तीसगढ़ में मरम्मत कर मुक़ाम हासिल करने वाले भूपेश बघेल जी को इस महत्वपूर्ण भूमिका के लिए चुना।
जनवरी में लगभग दो हजार किलो मीटर का सफर तय करके गुवाहाटी पहुँचे भूपेश बघेल के लिए पूर्वोत्तर का यह राज्य हर मायने में अलग था, चाहे वह भाषा हो या खान-पान। लेकिन चुनौतियों से भूपेश बघेल का लगभग हर सुबह-शाम का उठना-बैठना रहता है। सो इसे भी स्वीकार कर आगे बढ़े।
 
26 जनवरी 2021 को अपनी विश्वसनीय फ़ौज असम के लिए रवाना कर दी जिसमें विनोद वर्मा, रुचिर गर्ग, राजेश तिवारी थे।
फ़रवरी और मार्च का 2 महीने का समय था जिसमें भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ राज्य का बजट भी तैयार करना था, मार्च में होली जैसा प्रमुख त्यौहार भी।
 
वक़्त के कम होने का एहसास भूपेश बघेल को था। शायद यही कारण रहा कि अपनी टीम के प्रत्येक सदस्य को चुनाव ख़त्म होने तक वापस न लौटने का निर्देश दिया।
छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रबंधन में जो बूथ लेवल प्रशिक्षण 2 साल में पूर्ण हुआ, वह प्रशिक्षण इस टीम ने असम में महज़ डेढ़ महीने में पूरा कर दिखाया।
कांग्रेस और भाजपा दोनों दल यहाँ गठबंधन के साथ लड़ रहे थे। कांग्रेस को 126 में से 95 सीट पर लड़ने का मौक़ा मिला, लेकिन छत्तीसगढ़ की यह टीम 115 सीटों पर प्रशिक्षण समाप्त कर चुकी थी। मतलब तैयारी अधिक सीटों की रही लड़े कम सीटों पर।
 
अब 2 मई को परिणाम आ चुका है। कांग्रेस गठबंधन को बहुमत नहीं मिला है। फिर इतना सब लिखने का मतलब क्या? यह आप जानना चाह रहे होंगे।
चलिए आपको एक बात बताता हूँ, आपने असम कांग्रेस के किसी कार्यकर्ता को असम में कांग्रेस की हार पर शोक की नकारात्मकता में डूबे हुए देखा? उत्तर है नहीं।
ऐसा क्यों?
 
ऐसा इसलिए है क्योंकि जनवरी 2021 तक जिस कांग्रेस कार्यकर्ता के दिमाग़ में यह बात जा चुकी थी कि हमें उम्मीद सिर्फ़ 2026 की रखनी चाहिए, जिस कांग्रेस को स्थानीय मीडिया तक न कवरेज देना कम कर दिया था, जिस भाजपा को यह दिखने लगा था कि असम उसके लिए थाली में परोसा हुआ एक व्यंजन है वो सब धरा रह गया।
यह भूपेश बघेल जी के नेतृत्व, असम कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की मेहनत ही तो रही
 
- जो महज़ 1 महीने में कांग्रेस को न केवल स्थानीय मीडिया में बल्कि राष्ट्रीय मीडिया में तवज्जो दिलाने लगा
- जो बोडो फ़्रंट जैसे दल कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होने लगे
- जो रमन सिंह जैसे फुंके कारतूसों को स्टार प्रचारक न होने के बादजूद भी असम भेजना पड़ा
- जो नक्सल और पिछड़ेपन के कारण रमन शासनकाल में चर्चित रहा छत्तीसगढ़ अब “छत्तीसगढ़ मॉडल” बनकर असम में चर्चित रहा
फिर छत्तीसगढ़ मॉडल असम की जनता को पसंद नहीं आया?
 
गणित में अंतिम परिणाम ही सत्य होता है और वही उसका मान होता है।
अगर राजनीति को आप गणित समझते हैं तो आप यहीं पढ़ना बंद कर सकते हैं। और भाजपा को जीत की
बधाई दे सकते हैं।
लेकिन इत्तेफ़ाक से मैं रसायन विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ।
मैं राजनीति को केमिस्ट्री के नज़रिए से देखता हूँ।
जिसमें अंतिम उत्पाद से ज़्यादा महत्वपूर्ण अभिक्रिया के चरण होते हैं। चेन रिएक्शन में इनीशिएशन, प्रोपोगेशन और टर्मिनेशन तीनों स्टेप महत्वपूर्ण होते हैं।
इनीशिएशन-
कांग्रेस का हर कार्यकर्ता एकजुटता के साथ चुनाव लड़ा, कोई घर नहीं बैठा, तरुण गोगोई जी को याद करते हुए सब आगे बढ़े 
 
प्रोपोगेशन-
- यह असम में पहली बार हुआ कि टिकट के लिए कोई दिल्ली नहीं गया
- यह असम में पहली बार हुआ कि गठबंधन के लिए कोई दिल्ली नहीं गया
- यह असम में पहली बार हुए कि टिकट वितरण के बाद कोई बाग़ी नहीं हुआ
- यह असम ने पहली बार देखा कि एक राज्य का मुख्यमंत्री सब्जी की ठेलियों पर, दुकान-दुकान जाकर, घर-घर रुककर 5 गारंटियों पर पर्चे बांटकर वोट मांग रहा है
 
टर्मिनेशन-
अभिक्रिया के इस स्टेप में थोड़ी चूक हुई कि देश का गृहमंत्री मंच से “मियाँ अजमल- मियाँ अजमल” चिल्लाकर ध्रुवीकरण करता रहा और हम सिर्फ “ बिजली, आय, न्याय, रोज़गार CAA” पर अड़े रहे
कमी सिर्फ इतनी रह गयी कि कम जनसंख्या घनत्व, दूरगामी बिना नेटवर्क वाले इलाक़ों तक हम 20 दिन में अपनी 5 गारंटी नहीं पहुँचा पाए।
अभिक्रिया का ये अंतिम चरण जारी रहेगा, धीरे-धीरे सही प्रयोगशाला में तरीक़े बदलेंगे, जनता तक सच पहुँचेगा, ध्रुविकरण बंगाल की तरह हारेगा।
असम फिर से जीतेगा।
कांग्रेस फिर से जीतेगी।
कांग्रेस कार्यकर्ता को पार्टी का संदेश सही से न पहुंच पाने का दुःख तो है लेकिन इस दुःख में एक सकारात्मकता भी है कि उन्होंने लड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
युद्धों में हार जीत इस बात से तय नहीं होती कि कौन जीता- कौन हारा?, तय इस बात से होती है कि गोली पीठ पर खाई या सीने पर?
 
- आयुष पाण्डेय
(लेखक छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी आईटी सेल के महासचिव हैं)
 
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Last modified on Wednesday, 05 May 2021 20:06

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