चंडीगढ़: लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस आलाकमान ने आखिरकार नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाने का एलान कर दिया है. उनके साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए गए हैं जिसमें भौगौलिक और सामाजिक समीकरणों का ख्याल रखा गया है.

बीते दो दिनों में करीब 50 विधायकों से मिल चुके सिद्धू ने अपने नाम के एलान के बाद गुरुद्वारे और मंदिर जा कर मत्था टेका. सिद्धू के लिए यह जिम्मेदारी कांटों भरा ताज है क्योंकि उनकी नियुक्ति से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत पंजाब कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता नाखुश हैं. सिद्धू को छह महीने बाद होने वाले चुनाव की तैयारी तो करनी ही है साथ ही कैप्टन खेमें को भी साधना है. 

कैप्टन अमरिंदर सिंह की नाराजगी के बावजूद सिद्धू बने प्रदेश अध्यक्ष 

नए प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू जट सिख हैं और उनकी पहचान पूरे पंजाब में है. वे पटियाला से हैं और अमृतसर से चुनाव जीतते रहे हैं. क्रिकेट, टीवी और राजनीति के अब तक करियर में सिद्धू अपने तेवर, अंदाजे बयान और भाषणों की वजह से खासे लोकप्रिय हैं. पंजाब में उनकी छवि एक ईमानदार और बादल परिवार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले एक जुझारू नेता की है. गांधी परिवार खास तौर पर प्रियंका गांधी का भरोसा उन्हें हासिल है यही वजह है कि कांग्रेस में आए महज साढ़े चार साल होने और कैप्टन अमरिंदर सिंह की नाराजगी के बावजूद सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. सिद्धू के साथ लोकप्रियता तो है लेकिन टीम नहीं है. उनकी राहें चुनौतियों से भरी है.

वहीं कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर ओबीसी सिख और तीन बार के विधायक संगत सिंह गिलजियां, जट सिख और दो बार के विधायक कुलजीत नागरा, दलित सिख और पहली बार विधायक बने युवा सुखविंदर सिंह डैनी और हिन्दू समाज से प्रदेश महासचिव पवन गोयल को जगह मिली है. नागरा और गोयल मालवा इलाके से हैं, डैनी माझा और गिलजियां दोआबा इलाके के आते हैं. जानकारों के मुताबिक चारों कार्यकारी अध्यक्ष राहुल गांधी की पसंद हैं. किसी को भी कैप्टन या सिद्धू का नजदीकी नहीं कहा जा सकता.

सोनिया गांधी ने सिद्धू के नाम की चिट्ठी जारी कर दी

भले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह कह चुके हों कि आलाकमान का फैसला उन्हें मंजूर होगा लेकिन उनके खेमें से सिद्धू की नियुक्ति को रोकने की कोशिश आखिरी दिन तक हुई. दिल्ली में पंजाब के कांग्रेस सांसदों की बैठक में सिद्धू पर मंत्रणा हुई तो पंजाब से दस कांग्रेस विधायकों ने बयान जारी कर आलाकमान को कैप्टन की उपेक्षा ना करने की नसीहत दे डाली. इन सब के बीच सोमवार को चंडीगढ़ में पंजाब कांग्रेस के निवर्तमान अध्यक्ष सुनील जाखड़ द्वारा बुलाई गई विधायकों की बैठक को लेकर भी पार्टी में मतभेद शुरू हो गया. कैप्टन खेमा नहीं चाहता था कि यह बैठक हो और सिद्धू को शक्ति प्रदर्शन का मौका मिले. लेकिन उसके पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बिना और देरी के सिद्धू के नाम की चिट्ठी जारी कर दी.

क्रिकेट से राजनीति में आए सिद्धू बीजेपी में लंबी पारी खेलने के बाद बीते विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हुए थे. कैप्टन की सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया था लेकिन दो साल बाद ही विभाग बदले जाने से नाराज होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. बीते कुछ महीने में उन्होंने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला और खुल कर उन पर विरोधी बादल परिवार के साथ मिलीभगत का आरोप लगाए. खास तौर पर बादल सरकार के दौरान हुए गुरुग्रंथ साहिब बेअदबी मामले में एसआईटी की रिपोर्ट हाईकोर्ट में खारिज होने के बाद सिद्धू समेत कई मंत्री और विधायकों ने कैप्टन के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया.

क्या कैप्टन और सिद्धू साथ चल पाएंगे?

कैप्टन के खिलाफ माहौल बनते देख कांग्रेस नेतृत्व ने मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में एक कमिटी बनाई जिसने सभी विधायकों, मंत्रियों के साथ बैठक की. कैप्टन को भी दो बार पेश होना पड़ा. राहुल गांधी ने खुद पंजाब के कई नेताओं से मुलाकात की. कमेटी के सामने अपनी बात रखने के अलावा सिद्धू प्रियंका गांधी और राहुल गांधी से मिलकर भी अपनी बात रखी. दूसरी तरफ कैप्टन ने भी सोनिया गांधी से मुलाकात की. आखिर में तय हुआ घोषणापत्र में किए गए वादे पूरे करने की जिम्मेदारी कैप्टन की होगी और संगठन के कप्तान सिद्धू बनेंगे. शुक्रवार को सिद्धू को दिल्ली बुला कर राहुल गांधी ने उन्हें संदेश दे दिया और अगले दिन हरीश रावत को चंडीगढ़ भेज कर कैप्टन को भी बता दिया गया.

लाख टके का सवाल है कि क्या कैप्टन और सिद्धू साथ चल पाएंगे? नजर इस बात पर है कि असंतुष्ट खेमा सिद्धू की नियुक्ति के बाद खुल कर बगावत करता है या सही मौके का इंतजार! सवाल यह भी है कि सिद्धू को कमान का मतलब कैप्टन युग का समापन है?