vaccination-in-animal: पशुओं को गलघोंटू रोग से बचाव के लिए लगवाएं टीका,छत्तीसगढ़ में तेजी से ही रहा पशुओं का टीकाकरण ... जानिए प्रोसेस Featured

बरसात में अकसर पशु (गाय-भैंस) गलघोंटू रोग की चपेट में आ जाते हैं। वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. का कहना है कि पशुओं में लगने वाला यह जीवाणु जनित रोग संक्रमित है और तेजी से फैलता है। अगर लक्षण का पता लगने के बाद पशुओं का शीघ्र इलाज शुरू न किया जाए तो 24 घंटे के भीतर पशु की मौत हो जाती है। यह रोग 'पास्चुरेला मल्टोसीडा' नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है। यह जीवाणु सांस नली में तंत्र के ऊपरी भाग में मौजूद होता है। मौसम परिवर्तन के कारण पशु मुख खुर (गलघोंटू) रोग की चपेट में आ जाता है।

 बरसात में अकसर पशु (गाय-भैंस) गलघोंटू रोग की चपेट में आ जाते हैं। वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. का कहना है कि पशुओं में लगने वाला यह जीवाणु जनित रोग संक्रमित है और तेजी से फैलता है। अगर लक्षण का पता लगने के बाद पशुओं का शीघ्र इलाज शुरू न किया जाए तो 24 घंटे के भीतर पशु की मौत हो जाती है। यह रोग 'पास्चुरेला मल्टोसीडा' नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है। यह जीवाणु सांस नली में तंत्र के ऊपरी भाग में मौजूद होता है। मौसम परिवर्तन के कारण पशु मुख खुर (गलघोंटू) रोग की चपेट में आ जाता है।


छत्तीसगढ़ मे पशुओं बरसात के दिनों में होने वाली गलघोटू और एकटंगिया बीमारी से बचाव के लिए राज्य में 17 लाख 14 हजार से अधिक पशुओं को अब तक टीका लगाया जा चुका है। पशुधन विकास विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार पशुओं में होने वाली गलघोटू बीमारी से पशुधन हानि होने का अंदेशा रहता है। राज्य की सभी पशुपालकों को अपने पशुओं को उक्त बीमारी से बचाने के लिए टीकाकरण कराने की अपील की गई है। गलघोटू और एकटंगिया का टीका पशुधन विकास विभाग द्वारा शिविर लगाकर तथा पशु चिकित्सालयों एवं केन्द्रों में नियमित रूप से किया जा रहा है।


रोग के लक्षण
इस रोग से ग्रस्त पशु को अचानक तेज बुखार हो जाता है। बुखार की चपेट में आने से रोगी पशु सुस्त रहने लगता है तथा खाना-पीना छोड़ देता है। पशु की आंखें भी लाल रहने लगती हैं। उसे सांस लेने में भी दिक्कत होती है। उसके मुंह से लार गिरने लगती है। नाक से स्राव बहना तथा गर्दन व छाती पर दर्द के साथ सोजिश आना मुख्य लक्षण है।


रोकथाम
पशुओं को हर वर्ष बरसात के इस मौसम में गलघोंटू रोग का टीका लगवाएं।
-बीमार पशु को अन्य पशुओं से दूर रखें क्योंकि यह तेजी से फैलने वाली जानलेवा बीमारी है।
- जिस जगह पर पशु की मृत्यु हुई हो वहां कीटाणुनाशक दवाइओं का छिड़काव किया जाए।
-पशुओं को बांधने वाले स्थान को स्वच्छ रखें तथा रोग की संभावना होने पर तुरंत पशु चिकित्सकों से संपर्क करें।


उपचार
यदि इस बीमारी का पता लगने पर उपचार शीघ्र शुरू किया जाए तो इस जानलेवा रोग से पशुओं को बचाया जा सकता है। एंटी बायोटिक जैसे सल्फाडीमीडीन ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन और क्लोरोम फॉनीकोल एंटी बायोटिक का इस्तेमाल इस रोग से बचाव के साधन हैं।


टीकाकरण :
वर्ष में दो बार गलघोंटू रोकथाम का टीका अवश्य लगाना चाहिए। पहला वर्षा ऋतु में तथा दूसरा सर्द ऋतु (अक्टूबर-नवंबर) में। डॉ. अत्री ने सुझाव दिया कि भैंस को गर्दन के मांस में गहराई में टीका लगाया जाए तथा हर छह महीने के बाद टीकाकरण से पहले उसके ऊपर लिखी सूचना जरूर पढ़ें। टीके को दो से आठ डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखें।

Rate this item
(1 Vote)
Last modified on Friday, 18 June 2021 13:02

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

RO no 13028/15
RO no 13028/15 "
RO no 13028/15 "
RO no 13028/15 "

MP info RSS Feed