छत्तीसगढ़ में एक स्कूल ऐसा भी: स्कूल में घंटी बजते ही बच्चे घर नहीं, बल्कि जंगल की ओर भागते हैं... Featured

बोलता गांव डेस्क।।

नेशनल डेस्क: छत्तीसगढ़ में एक अनोखा स्कूल देखने को मिला है। जहां स्कूल की घंटी बजते ही बच्चे घर की और नहीं बल्कि जंगल की और भारते हैं। जी हां, आपने सही सुनी है। रायपुर से 109 किलोमीटर दूर महासमुंद जिले के बागबाहरा ब्लॉक में पहाड़ियों के नीचे बसा है कसेकेरा गांव। शनिवार दोपहर 1 बजे स्कूल की घंटी बजते ही बच्चे क्लास रूम से दौड़ते हुए बाहर निकले और खेलते-कूदते जंगल की ओर भागने लगे। ऐसा लग रहा था, मानो स्कूल की छुट्टी हो गई हो और बच्चे खेलने जा रहे हों। लेकिन ऐसा नहीं था, ये बच्चे अपनी रेगुलर क्लास के बाद प्रकृति को जानने के लिए जा रहे थे, क्योंकि स्कूल की क्लास के बाद अब उनकी पढ़ाई जंगल में पेड़-पौधे, पहाड़, नदी-तालाब के बीच होनी थी।

बच्चों के चेहरों पर उत्सुकता थी कि आज क्या जानने को मिलेगा। यहां पहुंचते ही बच्चे अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए। कोई पानी में कीड़े देख रहा था तो कोई पेड़-पौधों का प्रिंट लेने लगा। कुछ ही देर में कसेकेरा स्कूल के हेडमास्टर डॉ. विजय शर्मा भी पहुंच गए और पहाड़ी पर एक चट्टान पर बैठ गए। उनके साथ बच्चों ने भी अपने अपने लिए जगह तलाश ली और फिर शुरू हुई 'नेचर क्लास'। पिछले दो साल से ग्राम कसेकेरा स्कूल के कक्षा 6वीं से लेकर 10वीं तक के बच्चे प्रकृति के साथ मिलकर पढ़ाई कर रहे हैं। स्कूल के शिक्षक मैथ्स, केमेस्ट्री, बायो, फिजिक्स जैसे सब्जेक्ट के साथ ही औषधीय ज्ञान बच्चों को जंगल में ही देते हैं।

प्रकृति के बीच प्रैक्टिकल ज्ञान
बच्चों को मैथ्स, साइंस, एग्रीकल्चर, आयुर्वेद और औषधीय ज्ञान भी जंगल से मिल रहा है। मैथ्स में पढ़ाए जाने वाले टॉपिक ढलान पानी की रफ्तार, रोकना, क्षेत्रफल, गुणा-भाग को पौधों और पहाड़ के माध्यम से समझाया जाता है। साइंस में फिजिक्स के टॉपिक संतुलन, केमेस्ट्री में पत्तियों के रस का उपयोग, उनसे इलाज, औषधीय व दूसरे पेड़-पौधों की पहचान और उनका उपयोग, छाल का प्रिंट निकालकर आयु की गणना, गुण और व्यवहार का पता लगाना जैसे सभी प्रैक्टिकल काम यहां किए जाते हैं। वहीं जीव विज्ञान में नदी-तालाब में मिलने वाले जीव-जंतुओं को पहचान के बारे में बताया जाता है। बच्चे पौधरोपण के लिए निदाई, गुड़ाई और देखरेख भी सीखते हैं। 

बच्चे प्रतियोगिताओं में विजेता बन रहे
दो साल पहले शाला विकास समिति में बच्चों को नेचर से जोड़कर पढ़ाने के लिए हेड मास्टर ने प्रस्ताव रखा था। इसके बाद से बच्चों की स्किल और परफॉर्मेंस दोनों में सुधार आया है। बच्चों ने पिछले साल राज्य स्तरीय इंको क्लब प्रतियोगिता में 50 हजार के कैश प्राइज भी जीते थे।

बच्चों का बौद्धिक विकास अच्छा हो रहा
विदेशों में नेचर स्कूल का ट्रेंड पहले ही शुरू हो चुका है। ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में 'फॉरेस्ट स्कूल या 'बुश काइन्डीज', न्यूजीलैंड में स्थानीय माओरी जीवनशैली से बच्चों को जोड़ने की पहल की जा रही । वहीं कई देशों में 'एन्वायरो स्कूल' पॉपुलर हो रहे हैं। साथ ही यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) और इंपीरियल कॉलेज की एक स्टडी के अनुसार, प्रकृति के करीब रहना सेहत के लिए अच्छा होता है। इससे भावनात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याएं भी नहीं होती। जो बच्चे हरियाली के बीच रहते हैं, उनका बौद्धिक विकास भी अच्छा होता है। इसके उलट शहरी क्षेत्र में और प्रकृति से कटकर रहने वाले बच्चों को भावना और व्यवहार संबंधी दिक्कतों का जोखिम रहता है। न्यू एजुकेशन पॉलिसी में भी बच्चों के लिए प्रेक्टिकल एजुकेशन की बात कही गई है।

 
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Last modified on Monday, 29 January 2024 15:39

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